नेताजी कहा करते थे- भारत विश्व प्रासाद की नींव का पत्थर है। हमारी धरती अति प्राचीन है और हमारी सभ्यता एवं संस्कृति भी महान और प्राचीन है। क्षितिज के उस पार, बल खाती हुई नदी के दूसरी ओर, लहराते हुए जंगलों के पार इन धूमिल पर्वतों की ओट में हमारी जन्मभूमि है। जिसके धरातल से आकर्षित होकर स्वर्ग के देवता उतर आये थे। यह हमारी जन्मभूमि है, जिसकी धूल में राम और कृष्ण घुटनों के बल चले थे। मातृभूमि की उसी चरण धूलि में हमने तुमने जन्म लिया है। इसी धूल में हमारे इन सुगठित शरीरों का निर्माण संभव हुआ है। हमारी नसों में, रगों में उसी जन्मभूमि का अकूत प्यार समाया हुआ है और संचरित हो रहा है। हमें यदि अपनी स्वर्गादपि गरीयसी मातृभूमि के लिए कष्ट सहने पड़ते हैं तो क्या यह प्रसन्नता का विषय नहीं है। मेरी मातृभूमि मेरी रग रग में सतत् समाई हुई है। मेरी कल्पना की आंखों के आगे हर क्षण मौजूद है। इस आंतरिक निकटता में असीम आनंद है। जन्मजात आशावादी होने के कारण अखण्ड भारत के प्रति मेरा आत्मविश्वास अभी भी दृढ़ है। गहन अंधकार के पश्चात् प्रकाश के दर्शन होते हैं। वर्तमान समय में भले ही हम लोग गहन तमिस्रा से गुजर रहे हों, परन्तु उदीयमान नवप्रभात अति सन्निकट है।
जय भारत!! जय हिंद!! जय चित्रांश!!
डा ज्योति श्रीवास्तव
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती – सार्वभौम शक्तिशाली भारत के स्वप्नद्रष्टा नेताजी को नमन!!
23 जनवरी, 1897 को एक स्वप्न मुस्कराया था। आज से एक शताब्दी पूर्व नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्म के समय भारतमाता ने अपने अभ्युदय की आशाएँ सँजोई थी। भारत के राष्ट्रीय संघर्ष की ज्वालाएं उनके अस्तित्व में धधकती दिखाई दीं। वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रपुरुष थे। उन्होंने राष्ट्रनिर्माण का स्वप्न देखा था। अपनी मनोभावनाओं को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा भी मैं अपने सपनों से प्रेम करता हूँ। इन सपनों से मुझे प्रेरणा और संकल्पशक्ति प्राप्त होती है। मेरा सपना है स्वतंत्र, विशाल, महिमाण्डित एवं गौरवशाली भारत का अभ्युदय।