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कायस्थों की वर्तमान स्थिति केवल भूमिहीनता की नहीं, बुद्धिहीनता और अदूरदर्शिता की भी परिचायक है

राजकिशोर सिन्हा। आयु तो मेरी आध्यात्मिकता, ईश्वरलीनता और पारलौकिकता वाली है लेकिन इस लोक में जब तक रहना है, तब तक लौकिकता की चर्चा और चिन्ता भी करनी पड़ेगी।

कायस्थों पास आज भूमिहीनतावाली स्थिति है, लेकिन ऐसी स्थिति पहले नहीं थी। यह वर्तमान स्थिति केवल भूमिहीनता की नहीं, बुद्धिहीनता और अदूरदर्शिता की भी परिचायक है। पीने-खाने, भोग-विलास और सुख-भोग की अदम्य लालसा एवं विवेकरहित लिप्सा के कारण अन्ततः आज यह स्थिति बनी है। बच्चन जी भी 'मधुशाला' में लिख गए हैं-

"मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।"

बिहार राज्य में गया को कायस्थों की राजधानी कहा जाता था। नंदकुलियार परिवार के अलावा जजों के कई बड़े बंगले थे। गया के पास माड़नपुर जमींदार भी कायस्थ थे। टेकारी के राजा से कायस्थों के बड़े अच्छे संबंध थे। परन्तु बिहार में जंगलराज के कालखंड में कायस्थ लोग गया से भाग कर अन्यत्र चले गए। आज उनकी कोठियों पर यदुकुलगौरवों की ध्वजपताका फहर रही है। पूरे गया जिला की यही करुण कथा है, अपवादों की बात मैं नहीं कर रहा। पटना, मुंगेर, आरा, बक्सर व अन्य स्थानों से भी कायस्थ उस कालखंड में पलायन कर नोएडा-दिल्ली आ गए। पूरे बिहार की यही कथा है।

पूर्व कायस्थ राज्य सभा सांसद एक बार बता रहे थे कि मुजफ्फरपुर में कायस्थों की कितनी चलती थी, पटना में भी। ऐसे उदाहरण हजारों हैं, पूरे देश से हैं, सबके बखान का यहाँ कोई औचित्य नहीं।

यह स्थिति केवल खाने-पीने और भोग-विलास के कारण ही नहीं, अदूरदर्शितापूर्ण दान करने के कारण भी बनी है। प्रमाण के लिए डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की कितनी जमीन पर पटना में कौन-कौन से सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान चल रहे हैं, पता कर लीजिये, जानकर पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी।

केवल बार-बार यह बतलाना कि हमारे बाबा हाथी रखते थे जिसका सिक्कड़ यह देखिये अभी भी हमारे पास है, ऎसी बकथोथी से कोई भला नहीं होनेवाला। ये सब बीती हुई बातें हैं।

अपने गौरवशाली अतीत का वर्णन और बखान तभी शोभा देता है, जब गौरवशाली वर्तमान भी हो और गौरवशाली भविष्य भी सुरक्षित हो।

कल रात एक वीडियो देख रहा था जिसमें राजपूत समाज के लोगों ने पटना में एक जोरदार रैली निकाली, जिसमें वे माँग कर रहे थे कि बिहार सरकार ने अभी जातियों का जो सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है, उसमें राजपूतों की संख्या को बहुत कम दिखाया गया है, उसको ठीक किया जाए। रैली में राजपूत समुदाय का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व प्रभावशाली ढंग से करने के लिए राजस्थान से आया एक युवा भी जीप पर सवार और मुखर था।

ऐसी चिन्ता तो कायस्थों को होनी चाहिए थी क्योंकि उनकी वर्तमान जनसंख्या मात्र लगभग 0.60 प्रतिशत दिखाई गई है।

35-40 वर्ष की आयु में विवाह करने और ऊपर से 'हम-दो हमारे-एक' की नीति पर चलने के कारण कायस्थों की जनसंख्या आज विलुप्ति के कगार पर पहुँच गई है और एक दिन ऐसा भी आने वाला है जब इतिहास के पन्नों में लोग पढ़ा करेंगे कि कायस्थ नाम की भी कोई जाति कभी हुआ करती थी।

राजकिशोर सिन्हा बिहार से है, वर्तमान मे दिल्ली में रहते है,ये लेख उनके सोशल मीडिया से लिया गया है

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