Home » चौपाल » पदलोलुपता के लिए आपसी नफरत और कानूनी मुक़दमेबाजी, बस यही है अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की कहानी – आशु भटनागर

पदलोलुपता के लिए आपसी नफरत और कानूनी मुक़दमेबाजी, बस यही है अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की कहानी – आशु भटनागर

आशु भटनागर  I अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, इस नाम को सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये कोई बहुत विशाल  संस्था हो या कायस्थों के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हो I लेकिन वस्तुस्थिति एक दम उलट है I असल में ८० के दशक में मैनपुरी से पंजीकृत हुई अखिल भारतीय कायस्थ महासभा बस नाम की ही कायस्थों की संस्था है , बीते १ दशक में अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर लगातार कानूनी मसलो में उलझी रही कुछ लोगो की जिद मात्र बन कर रह गयी है I यु तो अखिल भारतयी कायस्थ महासभा की खुद को असली कहने वाली इकाई के उपर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगते रहेते है जिसमे पूर्व में राष्ट्रीय महामंत्री द्वारा अपने चुने हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही हटा कर कार्य कारी अध्यक्ष को  नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बना देने जैसे गंभीर आरोप भी इसी संस्था में है I इसी बात को लेकर भी कई साल इलाहबाद कोर्ट में मुक़दमे बाजी चली दोनों पक्षों ने एक दुसरे पर पैसे को लेकर गबन तक के आरोप लगाये I बाद में कोर्ट द्वारा बार बार डेट आगे बढाने पर फटकार लगाए जाने के बाद दोनों ही पक्ष कोर्ट के बाहर समझोता कर लेते है इस शर्त पर की पुराने राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा I इस सौदेबाजी में वो पैसो को कलर एक दुसरे पर लगाए गये सारे इल्जाम  कहीं खो जाते है और समाज एक बार फिर भोचक्क रह जाता है कि आखिर ये सब क्या हुआ ? क्या ये लड़ाई सिर्फ संस्था पर वर्चस्व मात्र की थी ? क्या आपस में कानूनी लड़ाई और नफरत सिर्फ संस्था पर पद लेने और काबिज होने की थी ? आखिर पैसो के गबन के उन आरोपों का क्या हुआ जो इन लोगो ने आपस में लगाए थे ? लेकिन अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की लड़ाई केवल यहीं ख़तम हो जाए ऐसा भी नहीं है , खेल तो इसके बाद शुरू होता है जब  समझोता करके साथ आये पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष को राष्ट्रीय कार्यकारणी में पता चलता है की एक बड़े नेता को उनकी जगह राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रतावित किया जा रहा है , बेचारे इतने बड़े नाम के आगे कुछ कह भी नहीं पाते और मन मसोस कर रह जाते है I अब इस पुरे प्रकरण में पदों की बंदरबांट भी पैसे लेकर होती है या अपनी अपनी पसंद और गुटबाजी के आधार पर ये यक्ष प्रशन है , क्योंकि अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की कार्य प्रणाली को करीब से देखने वाले बताते है की ये सारा खेल राष्ट्रीय महामंत्री के हाथो में हैं उन्होंने अपणु उपजाति के कई रिशेदारो को इसमें शामिल किया हुआ है जिससे वो जो चाहते है वहीं इस संगठन में रह पाता है I इन आरोपों में क्या सच्चाई है ये भी यही लोग जाने क्योंकि इसको लेकर कभी राष्ट्रीय महामंत्री ने कोई खंडन भी नहीं किया है I अंदर के हालात ये है की बीते कई सालो में महामंत्री पद से हटने की धमकी देकर महासभा को ब्लैकमेल करते रहे है ऐसे में कायस्थ समाज किस आधार पर अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को अपना माने ? किस आधार पर ये कहा जाए ये की महासभा देश के करोरो कायस्थ परिवारों का प्रतिनिधित्व करती है ? किस आधार पर ये लोगो को आमंत्रित करती है की सब उनके साथ जुड़े ? जबकि सबको ये पता है की राष्ट्रीय महामंत्री की जिद और सौदेबाजी के बीच उनका कुछ नहीं होना है ? सामजिक संस्था होने के बाबजूद इस संस्था का बीते ५ सालो का आडिट सार्वजनिक नहीं है ? हम अपने आप को शिक्षित व प्रबुद्ध वर्ग का मानते है पर ऐसे संघटनो से जुड़ने वाले लोग यह सत्यापन करना जरूरी नही समझते कि सही कौन है और गलत कौन? या सिर्फ पद का लालच उनकी आँखें बंद कर देता है? आइये अखिल भारतीय कायस्थ महासभा से सवाल उठाये और एक बार इनके स्वयंभू नेताओं से अपने राष्ट्रीय पदों पदों को त्याग  कर नए लोगो को उन पर लाने को कहे जिससे समाज में ये सन्देश जाए कि वाकई ये लोग समाज हित में काम कर रहे है ना की पदों पर कुंडली मार कर बैठने के लिए I

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