‘कर्म ही प्रधान है, बिना कर्म किए आपको सफलता नहीं मिलेगी’ ऐसा सोचना भी अब महापाप है- विवेक बाड़मेरी
आपने देखा हो या नहीं पर मुझे ऐसा देखने का कुछ समय का तजुर्बा है आप कह सकते हैं। कई बार देखने में आता रहता है कि किस तरह लक्षणहीन, अनाड़ी तथा असभ्य लोग केवल खुशामद करके कोर्इ बड़ा पद पा लेते हैं। इसके पीछे उनकी चापलूसी करने की प्रतिभा छुपी रहती है।
चलिए अब आपको विस्तार पूर्वक बतलाते हैं अच्छा चापलूस बनने के लिए किन गुणों का होना खासा महत्व रखता है। वैसे तो चापलूसी की कला काफी प्राचीन है। इसकी शुरुआत कब से शुरू हुई यह बताना मेरे लिए काफी कठिन है।
जनाब! चापलूसी का मतलब है बड़े साहब को प्रसन्न करने के लिए उनकी झूठी प्रशंसा करना, गलत ही सही पर उनकी हर बात पर वाह-वाह करना, अपने स्वार्थ को साधने के लिए दूसरों का अहित करने के लिए झूठी बातें बनाना, मन में मक्कारी छुपाकर मुस्कराहट और मीठी तथा ज्ञानपूर्ण बातों का प्रयोग करना।
वर्तमान युग में चापलूसी करने में माहिर होना बहुत जरूरी है। अगर आप किसी को तन की शक्ति से हरा नहीं सकते, अर्थात आप दुर्बल हैं, तो आप चापलूसी का सहारा लेकरआसानी से सामने वाले का तीया-पांचा कर सकते हैं। अपना घर चलाने के लिए यह पात्र किसी भी हद दर्जे की हरकत आपके साथ करने से नहीं चूकेगा। जाने कितने घर मात्र चापलूसी करने से ही चल रहे हैं। डिग्रियों वाले और तुजुर्बेकार मुंह की खाते हैं और चापलूस मजे से मक्खन लगाकर पेट भर रहे हैं।
'जनाब! चापलूसी करिए मस्त रहिए।'
अपनी कमियों को छिपाने के लिए चापलूस व्यक्ति अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रशंसा द्वारा दूसरे का अपमान बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं। चापलूस व्यक्ति किसी का कहीं भी अपमान कर सकते हैं, दूसरों के कार्य की प्रशंसा करना उनके लिए हिमालय से कूदने के बराबर होता है। मात्र दिखावे की बातें बनाना, तारीफ करनी हो तो मुंह पिचका लेते हैं और यदि किसी ने गलत कार्य किया तो ऊंचा ही बोलेंगे ताकि अन्य लोगों में उनका प्रभाव और छवि साफ-सुथरी बनी रहे, कुल मिलाकर दोस्तों ऐसे लोगों का खुद का कोई चरित्र ही नहीं होता। ऐसे व्यक्ति चापलूस होते हुए भी कभी ये मानने को तैयार नहीं होते कि वह चापलूस हैं....
विवेक बाड़मेरी ।
(यह लेख वास्तविक घटना पर आधारित है)
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