Home » चौपाल » कटाक्ष » कायस्थ संगठनो के हालत से : हाँथ–पाँव फूल गए और आँख-कान बंद -महथा ब्रज भूषण सिन्हा

कायस्थ संगठनो के हालत से : हाँथ–पाँव फूल गए और आँख-कान बंद -महथा ब्रज भूषण सिन्हा

इधर कई दिनों से मैं नेत्र रोग से पीड़ित था फिर कुछ दिन बाद कर्ण रोग से पीड़ित हो गया इसलिए मैं कलम नहीं पकड पा रहा था. पर काफी कोशिश से कलम पकड़ कर कुछ लिखने के लिय तैयार हो पाया हूँ. इसलिए आपके सामने हूँ. हुआ यों कि आजकल लक-दक परिधानों से सुसज्जित गले में गेंदा फूलों की हार, पीत पट्टिकाएं से सुशोभित गले और थोक भाव से ख़रीदे जाने वाले मंच वस्त्रों से आभूषित अपने मार्गदर्शकों को देख-देख कर आँखें चुंधिया गई थी दूसरा जय-जय चित्रगुप्त की जगह साईं ही साईं भजन एवं इसी बीच कायस्थ के जन-गण-मन अधिनायक के मुखारविंद से टपके अपने समाज के बीस करोड़ लोग में से कुल मिलाकर दस लोगों को छोड़कर, सबके लिए गाली वन्दना के शोर ने कर्ण पीड़ा बढ़ा दी. डॉ ने कहा है कि सावधान रहें अगर गाली वंदना को दिल पर ले लिया तो धड़कने भी साथ छोड़ सकती हैं. अभी मैं हॉस्पिटल में आँख और कान का इलाज करा रहा हूँ. और सोच लिया है कि दिल तो मजबूत रखना ही होगा. कायस्थ जो ठहरा. एकदम बुलेट प्रूफ होना होगा. अरे फिर गलत कह गया! कायस्थ होने का प्रमाण पत्र तो लिया ही नहीं. अब तो कायस्थ होने का प्रमाण पत्र भी उन्हीं से लेना है जो शायद कायस्थ ................................. सॉरी, वेरी-वेरी सॉरी. खैर, मुझे फूल चेकअप करवाना था सो अच्छा हॉस्पिटल खोजने चल पड़ा. मैंने एक बड़ा सा चमचमाता बोर्ड देखा - कायस्थ हमदर्द सुपर स्पेशलियटी हॉस्पिटल. पूछ-ताछ से मालुम हुआ कि यहाँ बड़े-बड़े रोगों का निदान कुछ ही देर में हो जाता है. और लोगों को दुबारा आने की जरुरत नहीं पड़ती. मै बहुत खुश हुआ. अंदर जा कर देखा वहां अनेक डॉ अपना-अपना विभाग खोले हुए हैं अपने-अपने नाम का बोर्ड लगा रखा है. एक बोर्ड पर लिखा था - डॉ झंडू, दुसरा देखा डॉ निर्मोही. तीसरा डॉ युक्तियुक्त, चौथा डॉ काबिल. पांचवा डॉ कुछ-कुछ, छठा डॉ कुछ नहीं. सातवाँ डॉ हमदर्द. सातवाँ देखते ही एक बारगी मैं चौंका याद आया सातवें गेट पर ही अभिमन्यु घिर गया था और मारा गया था. उसने ठीक कहा था “यहाँ बड़े-बड़े रोगों का निदान कुछ ही देर में हो जाता है. और लोगों को दुबारा आने की जरुरत नहीं पड़ती” अब मैं नहीं बचूंगा. ख्याल आते ही निकलने की कोशिश में एक व्यक्ति से टकराया. उसने कहा घबराओ नहीं यहाँ प्राण नहीं, जान निकाली जाती है ताकि बाहर जाकर निर्जीव सा घुमते टहलते रहो. इसके नीचे अनेक डिग्रियां लिखी थी जो अंग्रेजी में थी. मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ सो उसे न पढ़ सका और न समझ सका. मैंने सोचा इतना बड़ा डॉ तो जरुर इलाज अच्छा होगा. घुस गया चैम्बर में. पूछताछ हुई और फ़ीस जमा करने के लिए आगे भेज दिया. वहां एक और उत्तम बोर्ड देखा. – फ़ीस कुछ इस तरह थी- सामान्य लाभ- ग्यारह हजार रुपये. विशेष लाभ – इक्कीस हजार रुपये. आजीवन लाभ- इकतीस हज़ार रुपये. मैं अनुमान लगाने लगा. ग्यारह, इक्कीस व इकतीस हजार में मैं क्या-क्या काम कर सकता हूँ. सोचते-सोचते चक्कर आने लगा. और मैं वहीँ सिर थाम कर बैठ गया. धीरे-धीरे कुछ लोग मेरे गिर्द जमा हो गए. तरह- तरह की आवाजें आने लगी. कोई कहता. ऐसे खाली लोग को घुसने कौन दिया. कोई कहता अरे अपने पास नहीं तो दुसरे से तो लाना चाहिय था. इनसे कुछ होने वाला नहीं. कोई कुछ कोई कुछ. थोड़ी देर में जब थोड़ी बहुत राहत महसूस हुआ. मुझे मालूम हो गया था कि पीछे कोई दरवाजा है. बाहर निकलने की सोच ही रहा था कि दो सज्जन ब्रांडेड कपड़ों से लक-दक मेरे सामने आ चुके थे. बमुश्किल पहचाना. ये वही लोग थे जो कुछ माह पहले दीन-हीन वस्त्रों में अनमोल वचन हाँथ जोड़ कहते थे. अनमोल वचन तो अब भी जारी है पर गर्वित भाव से. भाई यह सुपर स्पेशलियटी हॉस्पिटल है यहाँ सबकुछ महंगा है. यहाँ दुसरे का दुःख-दर्द नहीं, अपना दुःख-दर्द मिटाया जाता है. समझे कुछ? सच मुच मै सबकुछ समझ गया था. तुरत बाहर निकला और उस सुपर स्पेशलियटी हॉस्पिटल को हाँथ जोड़ प्रणाम किया जहाँ उपचार नहीं अपचार किया जाता है. जान बचे तो लाखों पाए. लौट के बुद्धू घर को आये. -महथा ब्रज भूषण सिन्हा.

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