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मुद्दा : नया राजनैतिक दल बनाने के प्रयासों में लगे टीपी सिंह से कायस्थों के सवाल : समाज को तोड़ कर ABKM को आगे कर आपकी पालिटिक्स क्या है सर ?

लोकसभा में चुनावों में करारी हार के बाद विपक्ष बिखर चूका है I उत्तर प्रदेश में  महागठबंधन के टूटने के बाद तो उत्तर पदेश के कायस्थ छत्रपो में लगभग भगदड़ ही मच चुकी है I ऐसे में इलाहाबाद के प्रखर समाजवादी कायस्थ चेहरे की भागदौड़ बीते दिनों से काफी चर्चा में है I कायस्थ हलको में हो रही चर्चाओं के बीच जानकारी आ रही है की इलाहाबाद के प्रखर समाजवादी कायस्थ  और वरिष्ठ अधिवक्ता तेज प्रताप सिंह एक नया राजनैतिक दल बनाने के लिए प्रयास कर रहे है I हालाँकि कायस्थ समाज के नाम पहले ही दर्जन भर राजनैतिक दल पंजीकृत है ऐसे में चुनावों में पटना में बीजेपी के रविशंकर प्रसाद के लिए प्रचार और अपील करने वाले टीपी सिंह अब बीजेपी के खिलाफ सेकुलर फ्रंट की सोच ( कायस्थ आदिवासी , दलित और मुसलमान ) का समीकरण बनाकर जिस कदम की और बढ़ रहे है I उस पर यु तो कई सवाल पहले भी उठते रहे है लेकिन इसी राजनैतिक दल के पीछे कायस्थ समाज के विवादित संगठन अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को भी पीछे से बैक करने के योजना से ये पूरा प्रकरण ही खटाई में पड़ता दिख रहा है I बताया जा रहा है की बीते हफ्ते जिन बीजेपी विरोधी कायस्थ नेताओं को इस राजनैतिक दल में शामिल होने के लिए एक प्लेटफार्म पर लाया गया उसको अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की कार्यकारणी की  बैठक का नाम दे दिया गया I जिसके बाद ये सवाल उठ खड़ा हुआ की राजनैतिक दल का बुलबुला कितने दिन तक चलेगा I कायस्थ खबर से  वरिष्ठ कायस्थ  पत्रकार ने इस योजना पर बात करते हुए कहा टीपी सिंह जी वरिष्ठ है सभी लोग उनका सम्मान करते है लेकिन इस पुरे प्रकरण में उनक पीछे कौन है ये स्पस्ट नहीं है I टीपी सिंह निश्चित तोर पर किन्ही चाटुकारों द्वारा कहे जाने मात्र से इस योजना के क्रियान्वन में लग गये है I लेकिन राजनैतिक दल के लिए ज़रूरी बातो पर वो या तो ध्यान नहीं दे पा रहे है या उनको उनके पीछे कुछ लोगो ने निश्चिन्त कर दिया है I बकौल राजनैतिक चिन्तक उन्होंने ये भी  कहा की कोई भी पार्टी अपनी विचारधारा के आधार पर जन्म लेती है I जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी लोहिया की समाजवादी विचारधारा पर आधारित है I लेकिन २०१९ के इस महाचुनाव् में जब जाती की राजनीती करने वाले सभी राजनैतिक दलों का बुरा हश्र हो चूका है I मुस्लिम तुष्टिकरण को शह देने वाले सभी दल अपने अस्तित्व तक को खो चुके है I ऐसे में जाती और मुस्लिम गठजोड़ पर आधारित राजनीती के आधार पर कोई राजनैतिक दल बनाना समझदारी तो नहीं कहा जा सकता है I वही इस सबसे अलग एक और परेशानी है की कायस्थ समाज यादवो की तरह मुसलमानों से उतने करीब नहीं है I वस्तुत कायस्थ समाज के नेताओं का ये ज़मीनी सच से मुह फेरना ही कहा जाएगा की वो सिर्फ कुछ हाशिये पर गये नेताओं के कहने मात्र से कायस्थों को मुसलमानों के साथ ले आयेंगे I ये बात इसलिए महत्वपूर्ण है की पटना और लखनऊ दोनों ही जगह से हारे शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा का विरोध कायस्थ समाज ने इसलिए भी ज्यदा किया क्योंकि वो समाज की भावनाओं दरकिनार करके उनको मुस्लिमो की बेहद समर्थक कही जाने वाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ बैठे I कायस्थ समाज किसी भी कीमत पर ये मानने को तैयार ही नहीं था उनका राजनैतिक अस्तित्व मुसलमानों के साथ सुरक्षित है I वस्तुतः इस्लामिक कट्टरपन में खुद को असुरक्षित महसूस करने वाले कायस्थ किस तरह से ये स्वीकार करे ये भी एक बड़ा सवाल है इसके बाद असली मुद्दा है की पार्टी सबसे पहले चुनाव कहा लड़ेगी I तो सूत्रों से आ रही जानकारी के अनुसार २०२२ का उत्तर प्रदेश चुनाव इन लोगो की प्राथमिकता है I जबकि इससे पहले दिल्ली , हरियाणा ,और बिहार में चुनाव हो चुके होंगे तो क्या ये मात्र क्षेत्रीय पार्टी की कशमकश ज्यदा है I क्या ये सिर्फ उत्तर पदेश में अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के लिए राजनैतिक दल के बहाने लोगो को पीछे के दरवाजे से लाने की कोशिश मात्र है I ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते शनिवार को ही राजनैतिक दल के नाम पर जमा हुए सभी राजनैतिक लोगो को टीपी सिंह ने ही ABKM का संरक्षक बन्ने का आफर दे दिया I जिसके बाद कायस्थ समाज के चिंतको में सवाल उठने शुरू हो गये है कि

क्या राजनैतिक दल बनाने की बात से टीपी सिंह सभी कायस्थ संगठनों को दरकिनार कर सिर्फ ABKM की बात कर रहे है ?

क्या ABKM ही अकेले कायस्थ समाज का प्रतिनिधित्व करता है ?

आखिर महीने भर पहले तय हुई कायस्थ समाज के लिए राजनैतिक दल के लिए बिना किसी संगठन के बैनर के लिए मीटिंग क्यूँ नहीं काल की गयी, ताकि अन्य कायस्थ भी बिना हिचक के इसमें शामिल हो सकते

राजनैतिक दल बनाने के लिए बिभिन्न संगठनो के प्रतिनिशियो की जगह ABKM के प्रदेश कार्यकारणी बुलाने की ही क्या ज़रूरत है ?

या फिर  ABKM की आड़ में टीपी सिंह केपी ट्रस्ट की अपनी हारी लड़ाई को जीतने की ज़मीन तैयार कर रहे है I आपको बता दें की इस साल हुए केपी ट्रस्ट के चुनावों में टीपी सिंह तकनिकी कारणों से चुनाव नहीं लड़ पाए थे और उनके द्वारा समर्थित ABKM के ही प्रयागराज के जिला अध्यक्ष  कुमार नारायण बुरी तरह चौधरी जितेन्द्र नाथ सिंह से चुनाव हार गये थे I इन्ही सब बातो को देखते हुए आज का बड़ा सवाल यही हो गया है आखिर राजनैतिक दल के बहाने समाज को तोड़ कर ABKM को आगे कर आपकी पालिटिक्स क्या है सर ?

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