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कायस्थ पाठशाला चुनाव : किस्से, कहानियां और आज का सच

अतुल श्रीवास्तव / कायस्थ खबर डेस्क I कायस्थों की सबसे बड़ी ट्रस्ट केपी ट्रस्ट मे चुनावी मुनादी होते ही इलाहाबाद और ट्रस्ट के ट्रस्टी जो पूरे विश्व मे मौजूद है उनका और आम कायस्थों की निगाहे केपी ट्रस्ट के इलेक्शन उसके प्रत्याशीयो और उनके दावो पर ठहर गई है,  ये तो अलग बात है कौन जीतेगा कौन हारेगा अभी कौन कौन चुनाव लड़ेगा या कौन चुनाव नहीं लड़ पाएगा इन सबको तो खैर देखना होगा

लेकिन इससे पहले कि अपनी बात को कुछ बाते केपी ट्रस्ट के बारे मे अवगत करा दे कि आखिर केपी ट्रस्ट है क्या ?

केपी ट्रस्ट की स्थापना मुंशी काली प्रसाद कुलभास्कर ने सन 1873 मे की थी इसके पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है I अपने लिए तो सभी करते हैं लेकिन कुछ ऐसे बिरले भी होते हैं जो समाज के उत्थान के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं। मुंशी काली प्रसाद कुलभाष्कर भी ऐसी ही शख्सियत थे। समाज के युवाओं को शिक्षित और स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने कायस्थ पाठशाला की स्थापना की थी जो आज एशिया का सबसे बड़ा केपी ट्रस्ट बन चुका है।

मुंशी जी की एक भी संतान नहीं थी। ऐसे में उनकी लाखों की संपत्ति का कोई वारिस नहीं था। उनकी पत्‍‌नी सुशीला देवी ने उनसे कई बार किसी बच्चे को गोद लेने को कहा । उन्होंने एक दिन अपनी पत्‍‌नी को जवाब दिया कि हम एक नहीं बल्कि हजार बच्चों को गोद लेंगे। और उन्होंने अपनी इलाहाबाद और लखनऊ की जमीन और मकान दान कर दिया।और उन्होंने कायस्थ पाठशाला की स्थापना कीI

काली प्रसाद जी चाहते थे कि देश के युवाओं को स्वावलंबी और शिक्षा के जरिए आत्मनिर्भर बने । मुंशी जी ने कायस्थ पाठशाला की स्थापना की। जिसकी शुरुआत उन्होंने बहादुरगंज स्थित अपने घर से की।यहां सर्वप्रथम सात बच्चों को उन्होंने अपने साथियों के साथ पढ़ाना शुरू किया था

आज केपी ट्रस्ट मे आठ शैक्षिक संस्थाएं हैं। इसमें कुलभाष्कर आश्रम पीजी कॉलेज, सीएमपी डिग्री कॉलेज, काली प्रसाद ट्रेनिंग सेंटर, केपी इंटर कॉलेज, केपी ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, कुलभास्कर आश्रम इंटर कॉलेज, केपी कांवेंट स्कूल, केपी नर्सरी और जूनियर हाईस्कूल और चार कायस्थ पाठशाला। केपी ट्रस्ट के अभी तक 29 अध्यक्ष हो चुके और पिछले चुनावी आंकड़ो के करीब 29300 वोटर है जो इस बार बढ़कर करीब 32 हजार होने की संभावना है..

केपी ट्रस्ट मे मुंशी जी के अलावा दूसरे महादानी थे मुंशी महादेव प्रसाद । युवाओं की पढ़ाई- लिखाई और गरीबों के लिए उन्होंने अपनी लाखों- करोड़ों की अचल संपत्ति कायस्थ पाठशाला को दान कर दी थी। चौधरी महादेव प्रसाद का जन्म कड़ा इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर चौधरी रुद्र प्रसाद थे। इस परिवार की जमीदारी इलाहाबाद, बांदा, दरभंगा और मुजफ्फरपुर में थी।

उन्होंने अपनी वसीयत की और चौधरी बाबू महादेव प्रसाद ट्रस्ट बनाया। इस ट्रस्ट का मुतवल्ली अध्यक्ष कायस्थ पाठशाला को बनाया। उन्होंने वसीयत के जरिए सम्पूर्ण अचल संपत्ति कायस्थ पाठशाला को निहित कर दी। वसीयत में प्रावधान किया कि उनकी संपत्ति से अर्जित होने वाली आय का लगभग 50 फीसदी कायस्थ समाज के गरीब बच्चों की शिक्षा में उपयोग किया जाए। शेष पचास फीसदी उनकी पुत्री नवासगण को पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रहे। उन्होंने आला दर्जे की शिक्षा के लिए एक लाख रुपए नकद दान किए थे

चौधरी महादेव प्रसाद की एक संतान ठकुराइन भगवती देवी थीं। उनका विवाह सीतापुर के प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में ठाकुर विश्वंभर नाथ सिंह के साथ हुआ। उनके नवासगण उनकी वसीयत के मुताबिक हमेशा दखल रखते रहे है और रखते है I लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था I वसीयत के अनुसार उनका परिवार कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट से पीड़ी दर पीड़ी हिस्सा तो पा सकता था लेकिन चुनाव नहीं लढ़ सकता था I इसके लिए बाकायदा आज़ादी के बाद एक परिवर्तन किया गया जिसकी जानकारी हम आने वाले दिनों में देंगे

कभी होता था केपी ट्रस्ट में नामाकन के लिएहाथी घोडा  गाजे बाजे का इंतजाम

बताने वाले जानकार लोग बताते है एक समय ऐसा भी था जब केपी ट्रस्ट के इलेक्शन में लोग अपना नामांकन करते थे तो एक अलग ही समां होता था गाजे बाजे के साथ हाथी घोड़ा आदि के साथ होता था और मतदान मे भी यही समां  देखने को मिलता था

क्योकि ये ट्रस्ट अगर कहा जाए तो समाज के संभ्रांत  वर्ग के दान से बना हुआ ट्रस्ट था लेकिन वक्त बदला, १९८० के चुनावों के बाद धीरे धीरे इसमे आम कायस्थों का भी ट्रस्टी बनना प्रारंभ हुआ और वो शानो शोकत धीरे धीरे लुप्त हो गई

देखा जाए तो आज केपी ट्रस्ट मे चौधरी माहदेव प्रसाद जी के नवासे गण की फ़ैमिली का वर्चस्व दिखता है यदि देखा जाए तो बहुत बार उन्ही के परिवार के सदस्य ही केपी ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे.. सामान्य लोगो के न्यासी बनने के बाद धीरे धीरे कोठी यानी चौधरी परिवार के निवास स्थान को कहा जाता है उसके विरुध्द भी अवाजे उठने लगी

कई बार लोगो ने चुनाव मे बाजीया भी पल्टी, आज ये लड़ाई आम बनाम खास की बन चुकी केपी ट्रस्ट के इलेक्शन मे हर खड़े होने वाले हर प्रत्याशी का एक दावा ये अवश्य होता है कि कोठी को हराना है कई बार सफल भी हुए कई बार असफल इस बार भी ज्यादातर प्रत्याशीयो यही कहकर न्यास धारियों से समर्थन मांग रहे है अब वो कितना सफल होगे ये भविषय के गर्त मे है I इस मुद्दे की वजह से विभिन्न मुद्दे अपना दम तोड़ देते है जिनकी बात कोई प्रत्याशी नहीं कर रहा है

चौधरी महादेव प्रसाद के वारिस आज तक इसे युनिवेर्सिटी क्यूँ नहीं बना पाए ?

  • क्यो आज तक केपी ट्रस्ट यूनिवर्सिटी नहीं बन सका जबकि उसके बाद मे शुरू हुए बहुत से शिक्षण संस्थान यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त कर चुके है ?

  • क्या कारण है जो बच्चो को जो 500रुपया वजीफा मिलता है जिसका 300 रुपये महीने वो साइकिल स्टैंड को दे देते है और इस कारण ज्यादातर बच्चे इसमे इंटरेस्ट ही नहीं लेते है

  • केपी ट्रस्ट के मुख्यालय मे ऐसे बहुत से कर्मचारी है जो 20 से 30 वर्षो से नोकरी कर रहे है और इस महंगाई के दौर मे उनको सिर्फ 4 से पांच हजार रुपये पारिश्रमिक मिलता है किसी भी पूर्व या वर्तमान अध्यक्ष का ध्यान उन समस्याओ की ओर क्यो नही गया क्या कोई प्रत्याशी अपने एजेंडे मे इनकी बात करता है

  • कायस्थों के स्वास्थय को लेकर आज तक एक भी हॉस्पिटल क्यो नही बना सके ?

  • गरीब और बेसहारा कायस्थों की कितनी मदद के प्रयास किए गए ?

ध्यान रखना होगा केपी ट्रस्ट की आमदनी करोड़ो मे और करोड़ो मे इसकी चल और अचल संपत्ति भी उसके उपरांत भी अपने मिशन मे क्यो असफल दिखता है केपी ट्रस्ट?

केपी ट्रस्ट की जा जाने कितनी परिसंपत्तियो पर अन्य समाज के लोगो का कब्जा है ट्रस्ट आज तक उन संपत्तियों को क्यो मुक्त करा सका है
सवाल ढेरो है जो हम आपको समय समय पर अवगत कराते रहेगे I  ऐसे ही तमाम सवालत न्यासधारीयो और आम कायस्थों के मन मे कुलबुलाते है और इस बार के मुकाबले मे वो उसका समर्थन करने का मन बना रहे है अब प्रत्याशीयो को न्यासधारीयो की इच्छाओं का सम्मान करना ही होगा और अपने अजेंडे मे इन बातो को शामिल करना ही होगा क्योकि इस बार वोटर ज्यादा जागरूक दिख रहा है

और ये मुकाबला जिसे उन्होने आम बनाम खास का नाम दे रहे है और रोचक होता जा रहा है , मिलते है अगले लेख मे केपी ट्रस्ट के इलेक्शन से संबंधित अन्य जानकारी और वोटर और आम कायस्थों के मन की बात को लेकर इन पंक्तियों के साथ अभी अपनी बात समाप्त करते है

राजनीति का रंग भी बड़ा अजीब होता हैं,
वही दुश्मन बनता है जो सबसे करीब होता हैं.

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