यूपी/बिहार उपचुनावों में कायस्थों ने खेला मास्टरस्ट्रोक : बीजेपी के कायस्थों को लगातार उपेक्षा की दी सजा
कायस्थ खबर डेस्क I अब जबकि यूपी और बिहार के उपचुनावों में बीजेपी की हार पर तमाम चिंतन शुरू हो चुके है ऐसे इस पूरी हार में एक बड़ा फैक्टर कायस्थ समाज के बीजेपी के विरोध में पड़े वो वोट भी हैं जिनको इस बार चुनावों में बीजेपी ले ना सकी I देखा जाए तो बीजेपी में कायस्थों की लगातार हो रही उपेक्षा कायस्थों को लगातार परेशान भी कर रही थी
२०१४ के लोकसभा चुनाव में कायस्थों ने पारंपरिक बीजेपी बोटर की तरह वोट किया बाबजूद इसके की बीजेपी ने ना के बराबर कायस्थ को टिकट दिया था I यूपी और बिहार जैसे कायस्थ बहुल राज्यों में जहाँ कायस्थों की दावेदारी को खारिज कर दिया था वहीं दिल्ली में भी उनकी कोई पूछ नहीं हो रही थी इसके बाबजू २०१५ में एक बार फिर से जब बिहार विधान सभा के चुनाव हुए तो बीजेपी ने एक सिटिंग MLA रश्मि वर्मा का टिकट काट दिया जिसके बाद बीजेपी की परम्परागत सीट कांग्रेस ने जीती I बिहार में लोकप्रिय कायस्थ नेता आर के सिन्हा का लाभ तो लिया गया लेकिन उनके कहे प्रत्याशियों को को नजरअंदाज किया गया I जिसके बाद बिहार में कायस्थों ने ना सिर्फ उनके घर पर भी प्रदर्शन किया बल्कि महागठबंधन की और कदम बढ़ाया
लेकिन यूपी चुनावों में बीजेपी के साथ एक बार फिर इस उम्मीद से कायस्थ जुड़े की शायद बिहार से सबक ले कर यूपी में बीजेपी उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधत्व देगी I लेकिन इसी इलाहबाद में शहर पश्चिमी में कायस्थ दावेदार को टिकट नहीं दिया गया I साथ ही लखनऊ , बनारस कानपुर , बस्ती जैसे क्षेत्रो में भी कायस्थ को वो जगह नहीं मिली जिसकी उम्मीद वो बीजेपी से कर रहा था लेकिन देश हित में कायस्थ फिर भी बीजेपी के मोह से बंधा रहा
लेकिन फूलपुर और गोरखपुर के चुनाव में कायस्थ समाज के नेता एक बार फिर से बीजेपी को सांकेतिक झटका देते हुए नजर आये I कायस्थ वृन्द के धीरेन्द्र श्रीवास्तव के साथ इलाहाबाद के लोकर कायस्थ संगठन समाजवादी पार्टी के साथ खड़े होने शुरू हुए I वहीं कायस्थ पाठशाला के पूर्व अध्यक्ष टी पी सिंह ने भी समाजवादी पार्टी के नेताओं कुमार नारायण, अजय श्रीवास्तव के साथ मिलकर कायस्थों से एक बार समाजवादी पार्टी के लिए वोट करने की अपील कर दी I यहाँ तक की कानपुर से पूर्व समाजवादी विधायक सतीश निगम को हफ्ते भर कायस्थों के क्षेत्र में लगातार छोटी छोटी सभाए की गयी I
उस दौरान टीपी सिंह ने कायस्थ खबर से एक विशेष बातचीत में कहा था की कायस्थ राष्ट्रीय मुद्दो पर हमेशा राष्ट्रीय दलों में से ही चुनता है लेकिन इस बार कायस्थों को अपनी भूमिका और उसका प्रभाव राजनैतिक दलों को दिखाना ज़रूरी है उपचुनाव में बीजेपी के हारने से कोई संविधानिक संकट नहीं आएगा और कायस्थों को दुसरे दलो से कहने का मौका भी मिलेगा की अगर आप हमें सम्मान देंगे तो हम आपको वोट देंगे
इस पूरी श्रंखला में अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुबोध कान्त सहाय के नए समीकरण ने भी कर दी I गौरतलब है की २५ फरवरी को ही चुनाव के बाद चुने गए खांटी राजनेता सुबोधकांत सहाय ने कायस्थों को बीजेपी के साथ रहने पर मिले अपमान को याद दिलाते हुए कहा था की अगर वो KADAM ( कायस्थ -आदिवासी- दलित- अति पिछड़ा और मुसलमान ) के साथ आगे बढ़े तो उनकी राजनैतिक पहचान सुद्रह होगी I अभाकाम से जारी एक सन्देश में राष्ट्रीय महामंत्री विश्वविमोहन कुलश्रेष्ठ और वरिष्ठ उपाध्यक्ष डा मुकेश श्रीवास्तव ने भी आज इसी का इशारा दिया है
पिछले पिछले काफी समय से संगत पंगत के जरिये कायस्थों को राष्टवाद से जोड़ने वाले बीजेपी के प्रमुख नेता और कायस्थ मार्गदर्शक आर के सिन्हा का यूपी में उदासीन होना भी कायस्थों को सुबोधकांत सहाय और उनके विचार का साथ मिलना भी एक कारण कहा जा सकता है I गौरतलब है की २०१७ के यूपी चुनावों के बाद से ही आर के सिन्हा काफी शांत रहे और बिहार में ही काफी समय दे रहे थे I उनके उदासीन होने और उनके छत्रछाया में एक बडबोले नेता के लगातार गलत बयानों के बाद सुबोध कान्त सहाय जैसे कद्दावर नेता का कायस्थों को अपने पक्ष के लिए खीच लेना भी एक बड़ा कारण कहा जा सकता है