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कानाफूसी : अपना दोस्त फेल हो जाए तो दुःख होता है, लेकिन अगर टॉप कर जाए तो बहुत दुःख होता है

कानाफूसी डेस्क I  ३ इडियट में एक डायलाग है

"अपना दोस्त फेल हो जाए तो दुःख होता है, लेकिन अगर टॉप कर जाए तो बहुत दुःख होता है "

ऐसा ही कुछ हाल इन दिनों कायस्थ समाज सेवियों और समाज सेवा में दावा करने वाले लोगो का है I तो जनाब किस्सा है एक कायस्थ सामाजिक कार्यक्रम में एक बड़े बड़े समाज सेवियों के बीच एक साधारण से व्यक्ति को भी थोडा सा सम्मान मिल जाने का, मामला अगर यही तक होता कोई बात नहीं होती लेकिन ये बात हजम नहीं कुछ मठाधीशो को की आखिर उनके बराबर कोई साधारण कायस्थ कैसे हो सकता है , कैसे कोई उनके सामने उनके हिसाब से VIP पुरूस्कार पा सकता है बस यहीं से शुरू होती पत्थरबाज़ी, प्रोपेगैंडा, षड्यंत्रों की एक नयी कहानी जो आजकल सोशल मीडिया पर छाई है I मठाधीश और उनके समर्थक लगातार परेशान है की आखिर क्यूँ उस साधारण से तथाकथित पत्रकार को बुलाया और सम्मानित किया गया और जबाब माँगा जा रहा है आन्दोलन के आयोजको से कि फ़ौरन उस पत्रकार को उस महान आन्दोलन से बाहर करें I क्योंकि उस आन्दोलन का अगर कोई आधार है तो बस वही एक मठाधीश !!! उनके समर्थको ने घोषणा कर दी है की अगर उक्त मठाधीश वो आन्दोलन छोड़ दें तो आद्दोलन भरभरा कर ख़तम हो जाएगा , यही नहीं एक समर्थक ने तो यहाँ तक कह दिया की वो बस मठाधीश को मानते है , ना की आन्दोलन के प्रणेता को I अब ऐसे में जब तक उस पत्रकार और उसके जैसे साधारण लोगो को आन्दोलन से हटाया नहीं जाएगा वो आन्दोलन को बदनाम करने की मुहीम जारी रखेंगे इधर इस सब खेल में नए लोग बड़े परेशान है , समाज सेवियों के ऐसे हालत देख वो सोच रहे है की क्या वाकई कायस्थ समाज में समाज सेवा में उतरा जाए या फिर लाबिंग और एक दुसरे के अपमान , उठापटक में शामिल हो या फिर अब इस सब से दूर से ही प्रणाम कर ले I वही कायस्थ एकता और सेवा भाव के इस नए खेल में कायस्थ समाज के लोग अब इस किस्से को चटखारे लेकर सूना रहे है और कह रहे है की कायस्थ समाज की यही टांग खिचाई कभी कायस्थ समाज को एक नहीं होने दी I समाज में आज भी सेवा भाव कम , मठाधीशी ज्यदा है I जरा सी सफलता से ही समाज में लोकप्रिय हुए लोग पौराणिक कहानियों में इंद्र की भाँती नए लोगो के आगमन और उदय से ही भयभीत हो जाते है और फिर शुरू कर देते है लोगो को पीछे करने का खेल I बड़ी मुश्किल से सब गुटबाजी से उपर उठ कर ये आन्दोलन आया और इसने समाज के सब लोगो को गुटबाजी की जगह सेवाभाव से सबको एक किया लेकिन अब शीर्ष तक पहुंचे लोगो के इस आचरण ने कहीं ना कहीं इसकी स्पीड को ब्रेक लगाने का काम कर दिया है जो अंतत समाज के लिए ही नुक्सान करेगा

इति श्री देवाखंडे , प्रथम अध्याय, श्री १००८ कायस्थ मठाधीशी पुराण , बोलो श्री चित्रगुप्त भगवान् की जय !!!!

 

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