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पवन सक्सेना, कानपुरसे कहते है ,बड़े भाई में आपके पोर्टल के माध्यम से माननीय वाहिनी प्रमुख जी पूछना चाहता हु की क्या ये भाषा 42 देशो में काम कर रही कायस्थ वाहिनी के प्रमुख को शोभा देती है और किस योजना की बात कर रहे है समाज के किसी भी व्यक्ति की तरफ उँगली उठी तो प्रमुख जी ये जान ले ये कनपुरिया बोलता नही कर के धिकाता है। और बड़ा बड़ा कहने से नही होता बड़ा होना पड़ता है । जैसे आपने रंजीत बच्चन द्वारा जो कार्य पूर्व में कराया था देखिए माननीय सिन्हा अंकल जी ने आप सबको माफ कर दिया । है दम तो पूरे देश मे किसी दूसरी जात के भाजपा नेता को आप एवम आपके मित्र रंजीत बच्चन की कुछ कह के धिकाये अभी 5 मिनट में ओकात पता चल जाएगी ।। जय श्री चित्र गुप्त भगवान श्री चित्रगुप्त जी से प्राथना है कि अपने बच्चो को सद्बुद्धि दे।।।। और हा एक बात भूल गया कल आपने एक पत्रिका जारी की है वाहिनी की उसमे 42 देशो के वाहिनी पदाधिकारियो की फोटो एवम हिंदुस्तान भर के वाहिनी पदाधिकारियों फ़ोटो क्यो नही है जख्म अभी भरे है सूखे नही जब मुझ पर मुसीबत आयी थी तो मैं वाहिनी का कानपुर जिलाध्यक्ष था एवम मेरा भाई प्रशांत प्रदेश सचिव था तो आपने क्या किया था । बस बड़ी बड़ी बाते ओर कुछ नही।।।। डा ज्योति श्रीवास्तव देहरादून से कहती है, कायस्थ समाज में उपस्थित सभी सम्मानित बंधुओ से एक सवाल-- क्या पंकज जी, प्रमुख कायस्थ वाहिनी के इस अमर्यादित टिप्पणी को हमें पढ़कर, चर्चा करके बात खत्म कर देना ही एक उपाय है?? क्या हम अब इस स्तर पर बात करेंगे?? और क्या ये आप सबको स्वीकार्य है?? अलका भटनागर बुलंदशहर कहती है , गंदा और नकारा आदमी जो खुद एक कुत्ते की तरह केवल भौक सकता हैं जिसने आज तक सिर्फ भौकने का काम किया है उसे क्या पता आशू और स्वप्रिल ने अपनी उम्र से 10 गुना ज्यादा काम किया है ये महानुभाव पब्लिक से चंदा लेकर उनसे माला पहनकर खुद को मंत्री समझ बैठा है पंकज श्रीवास्तव मैं अलका भटनागर चेलेंज करती हूँ अब एक भी प्रोग्राम बुलन्दशहर मैं कर आके तब मानू और सुन तीन दिन नहीं तीन साल में भी इन बच्चों का तू कुछ नहीं बिगाड़ सकता कवि स्वप्निल ने लिखा बड़े अफसोस कि बात है कल जिन महानुभाव ने सप्तर्षि सम्मान दिया। जिन्हें मैं बड़ा भाई कहता हूँ। जिनसे कभी कोई तकरार ना हुई आज उन्होंने भी अपनी भाषा और संस्कारों का परिचय दे दिया। आखिरकार हम सब की गलती क्या है। बस इतनी ही कि एक तरफ जब आप लोग वातानुकूलित कमरे में सम्मान दे और ले रहे थे तब मैं और मेरे साथी जेठ की तपती दुपहरिया में धरने पर बैठ पसीना बहा रहे थे समाज के सम्मान हेतु। खैर आप के विचार आपको मुबारक। बन्द कमरे के चंद लोग कैसे तय कर सकते हैं कि बीमारी कौन है। वैसे जिस भाषा का आप प्रयोग कर रहे हैं वो आपकी मानसिक बीमारी का परिचायक है।आप लोग भी अपने विचार नीचे कमेन्ट बाक्स में दे सकते है
ARANKCHAN KE VIRODH ME KAYSTH NETA KYA KAR RAHE HAIN — KUCH HAI DAM DAAR