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क्या आप जानते है, दुनिया एक भारतीय कायस्थ के वजह से उठा पायेगी सुपरफास्ट 5G इंटरनेट का मजा

भारत में हम 4G इन्टरनेट के दौर में जी रहे है , मुकेश अम्बानी के  जिओ के आने के बाद देश भर में लोग 4G  टेक्नॉलजी  के बारे में बात करने लगे है लेकिन दुनिया में टेक्नालजी तेजी से बदल रही है। आज भले ही हम  4G इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन रिलायंस जिओ के सूत्रों की माने तो जल्द इसके जरिये  5G के जरिए सुपरफास्ट इंटरनेट इस्तेमाल किया जा सकेगा। दुनिया भर में इस टेक्नॉलजी को जमीन पर उतारने की कोशिशे अब मूर्त रूप ले चुकी हैं लेकिन क्या आप जानते है की इसका  इसका इतिहास 100 साल से भी पुराना है , महत्वपूर्ण बात ये है की कि इसका संबंध भारत से भी है और इसको तैयार करने वाले और कोई नहीं कायस्थ रत्न सर जगदीश चंद्र बोस है I

कौन हैं सर जगदीश चंद्र बोस ?

डॉ॰ (सर) जगदीश चन्द्र बसु (बंगाली: জগদীশ চন্দ্র বসু जॉगोदीश चॉन्द्रो बोशु) (30 नवंबर, 1858 – 23 नवंबर, 1937) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। वनस्पति विज्ञान में उन्होनें कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। साथ ही वे भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्त्ता थे। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। वे विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है। ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत में जन्मे बसु ने सेन्ट ज़ैवियर महाविद्यालय, कलकत्ता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। ये फिर लंदन विश्वविद्यालय में चिकित्सा की शिक्षा लेने गए, लेकिन स्वास्थ्य की समस्याओं के चलते इन्हें यह शिक्षा बीच में ही छोड़ कर भारत वापिस आना पड़ा। इन्होंने फिर प्रेसिडेंसी महाविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक का पद संभाला और जातिगत भेदभाव का सामना करते हुए भी बहुत से महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग किये। इन्होंने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरु किया। लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह इन्होंने इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इनपर आगे काम कर सकें। इसके बाद इन्होंने वनस्पति जीवविद्या में अनेक खोजें की। इन्होंने एक यन्त्र क्रेस्कोग्राफ़ का आविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। इस तरह से इन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता है। ये पेटेंट प्रक्रिया के बहुत विरुद्ध थे और मित्रों के कहने पर ही इन्होंने एक पेटेंट के लिए आवेदन किया। हाल के वर्षों में आधुनिक विज्ञान को मिले इनके योगदानों को फिर मान्यता दी जा रही है।

120 साल बाद  इंजिनियर्स (IEEE) ने बोस के शॉर्ट वेव कम्यूनिकेशन को दी  मान्यता

सर जगदीश चंद्र बोस मिलीमीटर वेवलेंग्थ्स ( 30GHz to 300GHz स्पेक्ट्रम) के जरिए रेडियो कम्यूनिकेशन का प्रदर्शन करने वाले दुनिया के पहले शख्स थे। टेक्नॉलजी के विकास के लिए समर्पित दुनिया की सबसे बड़ी इंटरनैशनल बॉडी इंजिनियर्स (IEEE)  ने 120 साल बाद  बोस के  1895 में किये शॉर्ट वेव कम्यूनिकेशनके प्रदर्शन को मान्यता दी है। जगदीशचन्द्र बोस पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो तरंगे डिटेक्ट करने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल किया था और इस पद्धति में कई माइक्रोवेव कंपोनेंट्स की खोज की थी । बोस ने 5mm की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें पैदा की थीं जिनकी फ्रिक्वेंसी 60 GHz थी। उस वक्त, जब इतनी लो फ्रिक्वेंसी को मापने वाले उपकरण भी इजाद नहीं हुए थे। जिन मिलीमीटर तरंगों पर जे.सी. बोस ने काम किया था, वही आज 5G को डिवेलप करने में मददगार साबित हो रही हैं।इटली के इन्वेंटर गुलिएल्मो मार्कोनी को 1895 में पहला टेलिग्राफ बनाने का श्रेय दिया जाता है। जिस वक्त वह इसे तैयार कर रहे थे, उसी दौरान बोस इस टेक्नॉलजी के पीछे की सायेंस को समझने में जुटे हुए थे। बोस की मिलीमीटर तरंगें आज आज कई जगह इस्तेमाल हो रही हैं। रेडियो टेलिस्कोप्स से लेकर रडार तक में इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। अभी कारों में कलिज़न वॉर्निंग सिस्टम और क्रूज़ कंट्रोल में भी इन्हें यूज किया जा रहा है।
सम्मान
  • उन्होंने सन् 1896 में लंदन विश्‍वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की
  • वह सन् 1920 में रॉयल सोसायटी के फैलो चुने गए
  • इन्स्ट्यिूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स ने जगदीष चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया
  • वर्ष 1903 में ब्रिटिश सरकार ने बोस को कम्पेनियन ऑफ़ दि आर्डर आफ दि इंडियन एम्पायर (CIE) से सम्मानित किया
  • वर्ष 191 में उन्हें कम्पैनियन ऑफ़ द आर्डर ऑफ दि स्टर इंडिया (CSI) से विभूषित किया गया
  • वर्ष 1917 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइट बैचलर की उपाधि दी
  स्रोत: Agence de presse Meurisse‏ [Public domain or Public domain], via Wikimedia Commons

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One comment

  1. *समाचार*

    *असम चित्रगुप्त सभा ने मनाया होली मिलनोत्सव*

    गुवाहाटी, २० मार्च। असम चित्रगुप्त सभा की केंद्रीय कार्यकारिणी के अग्रणी सदस्य डॉ० सुजय श्रीवास्तव तथा उनके सहयोगी मित्रों द्वारा गत १९ मार्च को गुवाहाटी के होटल सिग्नेट रिपोज के सभागृह में इस वर्ष का होली मिलनोत्सव बड़े धूम-धाम के साथ आयोजित किया गया। इस उत्सव में प्रीति मिलन, रंग-अबीर, सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा प्रीति-भोज के साथ-साथ असम में रहने वाले कायस्थ वर्ग के सदस्यों के हित के लिए असम चित्रगुप्त सभा द्वारा विभिन्न आगामी कार्यक्रमों के विषय पर व्यापक चर्चा की गई।
    होली मिलनोत्सव के इस भव्य आयोजन में चित्रगुप्त सभा के अध्यक्ष डॉ० शशिभूषण श्रीवास्तव, उपाध्यक्ष श्री कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव, महासचिव डॉ० कृष्ण के प्रसाद सहित नगर के जाने-माने डायबेटोलोजिस्ट डॉ० संजय किशोर, नगर के प्रख्यात व्यवसायी श्री कुलदीप श्रीवास्तव, विख्यात उद्यमी श्री ज्योतींद्रनाथ सहाय तथा अनेक गण्यमान्य जन सपरिवार उपस्थित हुए।
    महासचिव डॉ० कृष्ण के प्रसाद जी ने दैनिक पूर्वोदय को इस भव्य आयोजन की सूचना देते हुए इसमें संलग्न सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया और संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए प्रयासरत रहने का वचन दुहराया।

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