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बढ़ चले वीर नेता जी के पूरी आजादी लाने को, चढ़ आई आजाद हिंद ब्रिटिश साम्राज्य मिटाने को : नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में काव्य श्रद्धासुमन -कवि ‘चेतन’ नितिन खरे

नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में उनके जीवन एवं हिंदुस्तान की स्वतंत्रता हेतु उनके संघर्ष को एक कविता के माध्यम से आप तक पहुंचाते हुए उन्हें काव्य श्रद्धासुमन जिनके कारण हमें गुलामी की पीड़ा से मुक्ति मिली, जिनके कारण हमको पावन लोकतंत्र की शक्ति मिली, जिनके कारण आजादी ने खुलकर के अंगड़ाई ली, जिनके कारण घोर अँधेरे में इक किरण दिखाई दी, जिनके कारण भारत माता खुलकर के हरषाई थी, जिनकी कारण आजादी की दुल्हन ब्याहकर आई थी, जिनके कारण अंग्रेजों की चूल्हें चटक गयीं थीं सब, जिनके कारण गोरों की भी सांसे अटक गयीं थीं सब, जिनके कारण ब्रिटिश दरिंदे थर थर थर थर्राये थे, उसी वीर को कुछ देशी गद्दार बेंचकर आये थे, ......(1) समय बड़ा विपरीत शक्तियां टुकड़ों में थीं बटी हुईं, कुछ गोरों से भिड़े हुए कुछ अहसानों में पटी हुईं, कुछ छद्मवेशधारी भी करते फिर रहे दलाली थे, कुछ थे जो दृढ संकल्प लिए अद्भुत ही बलशाली थे, ऐसे ही वीर सुभाष हुए जिनको नेता जी कहते थे, जो भारत माता की हर पीड़ा को अंतस में सहते थे, अंग्रेजी राज्य मिटाने का प्रण जिसने कर डाला था, काट बंदिशें दुनिया की चल पड़ा अलग मतवाला था, वो भांप गया था तेजपुँज गोरे तो क्रूर लुटेरे हैं, जो चंगुल में चिड़िया सोने की चार सदी से घेरे हैं, ये न समझेंगे मैत्रीभाव मुगलों से अत्याचारी हैं, ये निकृष्ट दुष्ट आताताई और हम बने पुजारी हैं, हम बने विभीषण घूम रहे ये रावण से संहारी हैं, हम बने युधिष्ठिर बैठे हैं ये दुर्योधन पे भारी हैं, लिए कटोरा बने भिखारी मन निर्मूल लिए हम बैठे हैं, रक्त चढ़ाने की बेला में फूल लिए हम बैठे हैं,......(2) मन में अतुलित विश्वास लिए बस आजादी की आश लिए, चल पड़ा वीर सुभाष वहां आँखों में दिव्य प्रकाश लिए, आजाद हिंद सी फ़ौज बनाने शूरवीर प्रस्थान किया, तुम मुझे खून दो मैं आजादी नारे का आह्वान किया, बच्चे बूढ़े और जवान हो गए साथ मतवाले के, चल पड़ा कारवां पीछे ही उस भाग्य बदलने वाले के, माँ बहनों ने कंगन चूड़ी मंगलसूत्र उतार दिए, आजाद हिंद के लिए सभी ने अपने गहने वार दिए, इधर लगी आजाद हिंद आजाद देश की मांगों में, विश्व युद्ध में बंटा हुआ था उधर विश्व दो भागों में, अंग्रेजों के हितुवा गांधी ने सौगन्ध वहां पर खाई थी, गोरों का साथ निभाने वाली युक्ति एक सिखलाई थी, लेकिन सुभाष के शब्द लगे गांधी विचार पर भारी थे, दुश्मन का दुश्मन दोस्त सदा बोले चाणक्य पुजारी थे, खुद आजाद हिंद सेना को जापानी जर्मन में मिला दिया, नेता सुभाष के वीरों ने मिलकर दुनिया को हिला दिया,...(3) यही फ़ौज आजाद हिंद थी खड़ी शौर्य दिखलाने को, हुंकार रहे थे सब योद्धा मिटटी का कर्ज चुकाने को, बढ़ चले वीर नेता जी के पूरी आजादी लाने को, चढ़ आई आजाद हिंद ब्रिटिश साम्राज्य मिटाने को, तब चंद दलालों ने मिलकर आजादी का रुख मोड़ दिया, जो थे सुभाष के सपने सारे सपनों को ही तोड़ दिया, एक लिखित समझौता कर अंतिम क्षण बर्बादी ले ली, मिलने वाली थी पूरी पर आधी आजादी ले ली, उस पर भी गिद्धों ने मिलकर पंख गरुड़ के छांट दिए, भारत के दो टुकड़े करके हिन्द पाक में बाँट दिए, देंगे सुभाष जिन्दा मुर्दा कहकर के प्राण निकाल लिए, देश बांटकर भी भुजंग छाती में अपनी पाल लिए,...(4) समझौता सुभाष के जीवन का जीते जी ही कर डाला, भुला दिए नायक सारे सब श्रेय स्वयं पर धर डाला, भुला दिए आजाद भगत अरु बटुकेश्वर भी भुला दिए, काले पानी के सब सेनानी संग सावरकर भी भुला दिए, समझौते के बाद देश की जनता को फिर छला गया, कह दिया वीर सुभाष वहां इक दुर्घटना में चला गया, छल प्रपंच हुआ तब बहुत बड़ा भारत की जनता सारी से, कह दिया जल गया तेज़ पुंज इक नन्हीं सी चिंगारी से, भ्रम फैला दिया देश में पूरे की नेता जी नहीं रहे, इनके अनन्य अपराधों की गाथा बोलो तो कौन कहे, हुआ हादसा जिस विमान में उसकी तलाश दिखा देते, गर चला गया था शूरवीर तो उसकी लाश दिखा देते, *-----**------*----** रचनाकार- कवि 'चेतन' नितिन खरे सिचौरा, महोबा

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