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कायस्थ वृंद : सामूहिक नेतृत्व का एक साल , कितने दूर कितने पास ?

१२ मार्च २०१७  , आज  सामूहिक नेतृत्व की जिस अवधारणा को मिर्जापुर में डा अरविन्द  के घर पर इसके  प्रमुख सदस्यों के साथ धीरेन्द्र श्रीवास्तव और डा अरविन्द ने शुरू किया था उसको १ साल हो गया है I समाजवाद  की समतामूलक , समावेशी कार्यशैली को आधार मान कर इसकी परिकल्पना की गयी और फिर शुरू हुआ कायस्थ समाज के सभी संस्थाओं के प्रमुखों , सोशल मीडिया पर आगे बढ़ते सभो लोगो को उनकी संस्था या फेसबुक/व्हाट्सअप्प ग्रुपों को बंद किये बिना एक साथ लाने का भागीरथ प्रयास I इस प्रयास में ब्रह्मा, विष्णु , महेश बने इसके मुख्य समन्वयक धीरेन्द्र श्रीवास्तव , राष्ट्रीय संयोजक डा अरविन्द श्रीवास्तव और संजीव सिन्हा I १ साल में इन तीनो ने हालांकि सबको एक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर कायस्थ खबर आज १ साल बाद ये स्वतंत्र विश्लेषण कर रहा है की क्या सामूहिक नेतृत्व की जिस अवधारणा को १ साल पहले शुरू किया गया , उससे कायस्थ समाज ने क्या पाया ? आज कायस्थ समाज के लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है की आखिर बिना संगठन बनाए विभिन्न विचारधारो पर बने कायस्थ संगठनो को एक करने में कायस्थ वृंद कामयाब हुआ या नहीं ? देखा जाए तो १ साल का समय किसी भी प्रयास का विश्लेषण करने और उसे सफल या असफल बताने के लिए नाकाफी है , हालांकि हम इसे एक अंतराल के बाद किया जाने वाला अवलोकन कह सकते हैं , जो थोडा बुरा भी हो सकता है I ऐसे में अगर कायस्थ वृंद के प्रथम वर्ष में किये गये प्रयासों पर एक नजर _ क्या कायस्थ वृंद सभी संस्थाओं को एक मंच पर ला पाया ? १ साल ४ अधिवेशन के बाद कायस्थ वृंद के लिए ये सवाल आज बड़ा सवाल है की उसके साथ आज कितने संगठन है ? या फिर यूँ कहे की उसके साथ आये कितने संगठन या संस्थाए ज़मीनी कार्य कर रहे है ? ऐसे में कायस्थ वृंद इस पैमाने प्रयत्नशीलशील तो रहा की सभी संगठनो को एक साथ लाये लेकिन कायस्थ खबर के उसे अभी २५% ही कामयाब मानता है I हालांकि प्रयास को असफल कहना गलत होगा क्योंकि विभिन्न संगठनो की कार्यशैली में हस्तक्षेप किये बिना उनको एक एजेंडे पर चलाने के लिए ये आंकडा कम भी नहीं है , लेकिन समाज की अपेक्षाओ को देखते हुए कायस्थ वृंद की इस तिगडी को अभी और गंभीर कार्यकरने की आवशयकता है क्या कायस्थ वृंद में शामिल संस्थाए / लोग समाज के लिए कुछ नया करने में सफल हुए ? ये एक बड़ा प्रशन है जिस पर भी कायस्थ वृंद को अवलोकन करना ही होगा I आखिर संस्थाओं की जबाबदेही ही उन्हें उनको सौपे गये कामो के लिए कर्मठ बनाती है I ऐसे में अगर हम देखे तो कायस्थ वृंद से जुडी संस्थाओं ने मीटिंगों में तो जोर शोर से बातें की और एजेंडे पर हामी भरी लेकिन बहुत ही कम मुद्दों पर एक हो कर चलने में कामयाब रहे I देशरतन डा राजेन्द्र प्रसाद के जनम दिवस को संविधान निर्माता दिवस मनाने के एजेंडे को अपवाद छोड़ दे तो अभी तक कायस्थ वृंद के सभी संगठन बिभिन्न मुद्दों पर एक नहीं दिखे I स्वयं भू  अध्यक्षों के अहम से बिगड़ा खेल ? कहते है कभी कभी ज्यदा सरल होना भी आपका नुक्सान कर जाता है , कायस्थ वृंद ने भी सबको स्वायतता देते हुए सरल तरीके से सबको साथ लेने के जोश में कुछ नुक्सान उठाया है उसको भी यहाँ कहना ज़रूरी है I सामाजिक परिवेश और सामाजिक बन्धनों का प्रेम भाव से बाँधना ही भारतीय समाज की सफलता है I लेकिन कायस्थ वृंद अपने शुरूआती दौर में संगठनो को शामिल करने के लिए जिन नियमो को शामिल कर रहा था उनमे बाद में थोड़ी ढील दी गयी I अनुशाशन और जबाबदेही  को सरल मान लेने के कारण लोगो की महत्वाकांक्षाये फिर से उभर कर आयी और आपस में खीचतान भी हुई I एक दुसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण एक और कारण रहा जिसने कायस्थ वृंद की गति को रोकने का काम किया , हालांकि थोड़े देर से ही सही उसको समय समय पर ठीक भी किया लेकिन उसके चलते विवाद भी हुए I आगे के लिए अब क्या ? सामूहिक नेतृत्व की जिस अवधारण को १ साल पहले जिन उदेश्यों के साथ शुरू किया था आज कायस्थ वृंद के सभी संगठनो को ये सोचने की आवशयकता है की उनको कैसे प्राप्त किया जाए I कहते है की कोई भी प्रयास एक बार में सफल नहीं होता , एक प्रसिद कहावत है की रोम एक दिन में नहीं बना I ऐसे ही कायस्थ वृंद भी एक प्रयास है और इसमें नित नए प्रयासों और कर्मठ युधाओ की ज़रूरत होगी ताकि कायस्थ समाज के लिए बने संगठनो के इस सूत्रधार  के ज़रिये सभी संस्थाओं को एक माला में पिरोया जा सके और समाज के गले में सुंदर माला शुशोभित की जा सके कायस्थ खबर शुभकामनाये देता है कायस्थ वृंद के उन सभी कर्मठ , जुझारू स्तंभों का जिन्होंने  अपमान , तिरस्कार और अपशब्दों को हँसते हँसते बर्दाश्त किया I हालांकि ऐसे अपमान के दौर अभी और कई आने है लेकिन आपको आगे सफलता से बढते जाना है I हरिवंश राय बच्चन की एक कविता के साथ बस इतना ही  
है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे, है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे, किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित, है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा, आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
 

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One comment

  1. Tripurari Prasad Buxi

    किसी भी ग्रुप/संस्थ/संगठन के कार्य को एक वर्ष में आकना गलत होगा ।
    12 अप्रैल 2015 को हुई कायस्थवृन्द की पहली बैठक में कमिटी की गठन किया गया जिसकी प्रतिक्रया में अन्य संगठनों ने हमें फेसबुक/व्हाटसअप का ग्रुप कह कर हमें हलके में लिया परन्तु यह ग्रुप गिरिडीह में हुए बैठक के बाद अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ तो अन्य संगठनों ने हमें स्वीकार करना प्रारंभ किया ।
    डॉ राजेंद्र प्रसाद के संविधान निर्माता के मुद्दे पर भारत सरकार भी असहजता महसूस किया वो यह बताने में असमर्थ व्यक्त किया कि संविधान किसने बनाया हालांकि इस बात पर हम अपनी लडाई उस रूप में नहीं लड पाये जैसी अपेक्षा थी वजह अन्य बडे संगठनों की उदासीनता रही ।
    काकायस्थवृन्द अपने तृतीय बैठक के पश्चात राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए योजना बनायी जिजिसका रिपोर्ट आगरा बैठक में होगी ।
    हम सासामाजिक स्तर पर गिरिडीह झारखंड में ब्लड डोनेशन का कार्य किए वो आगे विद्यार्थीयों के लिए G. K. Contest, Sit & Draw contest जून माह तक कराने जा रहे हैं जिसकी सराहना स्थानीय स्तर पर हो रही है जिसमें गिरिडीह के अन्य संगठनों ने भी सहयोगात्मक रूख लिया है ।
    हम उम्मीद करते हैं कि इस तरह का कार्य करके समाज में एकजुटता की भावना पैदा कर सकते हैं ।
    हम आगरा बैठक में सुरेंद्र कुलश्रेष्ठ के सानिध्य में कुछ सफल निर्णय लेने की कोशिश करेंगे जो समाज के लिए एक नजीर होगा ।

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