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कायस्थ विरोधी है नितीश सरकार – बिहार सरकार की हो गई सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी

चाहे कितने भी दावे कायस्थों की एकता के किये जा रहे हो , कितनी भी बातें हमारी शक्ति की की जा रही हो , कितने भी सम्मलेन किये जा रहे हो पर बिहार मैं कायस्थ समाज की संपत्ति को नितीश  कुमार की अगुयाई वाली सरकार एक के बाद एक हथियाने मैं लगी है I कायस्थ खबर को हाल ही मैं पता लगा की किस तरह बिहार सरकार द्वारा पटना के सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी का अधिग्रहण करने के लिए भी अधिग्रहण और प्रबंधन विधेयक सदन से पास कराया. अब इस लाइब्रेरी पर सरकार का नियंत्रण होगा. और उन्ही की पार्टी के कायस्थ नेताओं ने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया है जिससे कायस्थ समाज के लोग बहुत निराश है क्या है सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी ? सिन्हा पुस्तकालय पटना का एक सार्वजनिक पुस्तकालय है। इसकी स्थापना आधुनिक बिहार के निर्माता स्वर्गीय डा0 सच्चिदानन्द सिन्हा द्वारा अपनी पत्नी स्वर्गीया श्रीमति राधिका सिन्हा की स्मृति में 1924 में की गई । डा0 सिन्हा ने इसकी स्थापना लोगों के मानसिक, बौद्धिक एवं शैक्षणिक विकास के लिए की थी। इसका मूल नाम 'श्रीमती राधिका सिन्हा संस्थान एवं सच्चिदानन्द सिन्हा पुस्तकालय' था। सिन्हा पुस्तकालय की लाइब्रेरियन के अनुसार वर्तमान समय में यहां एक लाख 80 हजार पुस्तकें हैं।  पटना संग्रहालय से कुछेक कदमों के फासले पर स्थित यह लाइब्रेरी आज अराजकता और कायस्थ समाज के खिलाफ  घृणित इरादों का जीता जागता उदाहरण बन कर रह गया है। आपका आश्चर्य और क्षोभ तब और भी बढ़ जाएगा जब आपको इस बात की जानकारी होगी कि इसको संचालित करने वाली ट्रस्ट के सदस्यों में पटना उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश, राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य के शिक्षा मंत्री तथा पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति हैं। 1950 में डा0 सिन्हा की मृत्यु हो गई। 1955 में ट्रस्ट और बिहार सरकार के बीच एक अनुबंध हुआ। उसके अनुसार सरकार में सिन्हा लाइब्रेरी को क्षतिपूर्ति अनुदान प्राप्त संस्था का दर्जा देकर बिहार राज्य केन्द्रीय पुस्तकालय घोषित किया गया। देश-विदेश के शोधार्थियों, विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए यह तीर्थ स्थल की तरह है । यहां की पाठ्य सामग्रियों की मांग लोक सेवा आयोग, लोक सभा, त्रिमूर्ति पुस्तकालय और नेशनल लाइब्रेरी तक से होने लगी थी।” संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष रहे डा0 सच्चिदानन्द सिन्हा द्वारा स्थापित सिन्हा लाइब्रेरी एक वक़्त में पंडित जवाहरलाल नेहरु, डा0  सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा0 श्यामा प्रसाद मुख़र्जी, महान भौतिकशास्त्री सर सी वी रमन जैसे लोगों की प्रिय जगह थी। इस लाइब्रेरी में करीब 1.8 लाख पुस्तकों का संकलन है। क्या है विवाद ? 12 अगस्त 1983 को तत्कालीन राज्यपाल डा0 किदवई ने संविधान की अनुच्छेद 213 खंड (1) के आलोक में अध्यादेश के माध्यम से उक्त दोनों संस्थानों का अधिग्रहण कर लिया। किन्तु ट्रस्ट के सचिव और प्रबंधकों ने इस अधिग्रहण का विरोध किया और इस निर्णय को उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। पटना उच्च न्यायालय ने अधिग्रहण को सही ठहराते हुए अपना निर्णय सरकार के पक्ष में दिया। प्रबंधन से जुड़े लोग इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय चले गए। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि इस महत्वपूर्ण संस्थान का अधिग्रहण सरकार अध्यादेश के द्वारा नहीं, बल्कि राज्य के दोनों सदनों में बहस कर अपने अधीन करे। नितीश सरकार का कायस्थ विरोधी कदम  सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ना मानते हुए बिहार की नितीश सरकार ने कायस्थ समाज की अमूल्य धरोहर को अब विधेयक के माध्यम से अपने स्वामतिव मैं ले लिया है I जिसका कायस्थ समाज के लोग और ट्रस्ट दोनों ही विरोध कर रहे है I ऐसे मैं सवाल ये है की क्या इस अधिग्रहण को अब चुनोती दी जा सकती है या कायस्थ समाज की एक और धरोहर समाजवाद के मसीहा श्री नितीश कुमार के सोशल न्याय के नाम पर ख़तम हो जायेगी

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