आशु भटनागर I बीते दिनों लखनऊ में एक बड़ा कायस्थ सम्मलेन हुआ I कहने को ये कार्यक्रम वहां की समन्वय समीति के नाम से थी लेकिन जब मंच सजा तो पैसे की चमक दमक के पीछे के समाज की मज़बूरी के पैबंद भी नजर आने लगे I लखनऊ में पैसे की नुमाइश के बलबूते इतना बड़ा कार्यक्रम शायद ही हुआ हो I कायस्थ ही नहीं अन्य समाज भी हतप्रद था की एकता के नाम पर कायस्थों में भी कोई इतना वैभव दिखा सकता है या इतना पैसा खर्च कर सकता है I आयोजक अपनी इस सफलता पर इतराए जा रहे थे
लेकिन कार्यक्रम में ही एक गरीब कायस्थ बच्ची के अरमानो को खर्च किया पैसा भी पूरा नहीं कर पा रहा था I दूर सुलतान पुर से आई एक 5 साल की कायस्थ बच्ची अनन्या अपने माँ बाप से लगातार जिद कर रही थी की उसका एक २ मिनट का कत्थक न्रत्य जिसको वो गृह मंत्री राजनाथ सिंह को दिखाना चाहती थी वो क्यूँ नहीं करवा रहे है , बेबस पिता अपनी बच्ची की जिद को लेकर पैसे की नुमाइश बने इस तथाकथित समाज के समागम में भाग फिर रहे थे , हाथ जोड रहे थे , गिडगिड़ा रहे थे लेकिन बड़े बड़े मंत्रियो , संतो महंतो में बच्ची की सुने कौन?
इस सब से कार्यक्रम के सह संयोजक भी इतने व्यथित हुए कि उन्होंने कार्यक्रम को ही छोर दिया , जहाँ सबका ध्यान पैसे की चमक दमक पर था वही ये कार्य्रकम से चुपचाप चले गये , बच्ची की तो वैसे भी किसी ने नहीं सुन्नी थी ओ भी मायूस हो कर चली गयी I
अब आते है कायस्थ समाज में आये हुए इस बदलाव की कहानी पर I पहले जरा कुछ आंकड़े समझ लेते है की की आज के दौर में ऐसे बडे कार्यक्रम में औसतन कितना खर्च होता है I तो इस कार्यक्रम में जो खबरे निकल कर आ रही है उसके मुताबिक़ १५ लाख रूपए तो सिर्फ टेंट पर खर्च किये गये , १८ लाख रूपए के होर्डिंग शर भर में लगाए गये , १५ लाख रूपए के विज्ञापन सिर्फ कार्यक्रम वाले दिन सारे अखबारों के लखनऊ एडिशन में दिए गये I ३ लाख रूपए नुक्कड़ नाटक के लिए दिए गये , ऐसे ही अन्य लाखो रूपए निमंत्रण पत्र से लेकर
कायस्थ(?) लोगो की भीड़ लाने वाली बसों को अरेंज करने में भी किये गये I
अब सवाल ये है की ये समाज के पैसे थे या समाज के नाम पर किसी व्यक्ति विशेष के ?
कुल मिला कर लखनऊ में कायस्थों में चर्चा है की करोरो रूपए के कार्यक्रम के बाद कायस्थों को क्या मिला ?
यही सवाल आज सबसे बड़ा है की सामाजिक संस्था के नाम पर समाज के पैसो से किये गए इस कार्यक्रम में इतना अपैसा खर्च करके आखिर लोगो को क्या मिला ? समाज को क्या मिला , राजनाथ सिंह आये भाषण दिए और समाज को लेकर कोई भी घोषणा किये बिना चले गये I क्या राजनाथ सिंह के पास एक बच्ची के २ मिनट का नृत्य देखने का समय नहीं था जबकि इसी कार्यक्रम में एक एक भजन गायिका ३ घंटे अपना कार्यक्रम दे रही थी I
गैर कायस्थ कलाकारों को मंच देना भी समाज का ट्रेंड बन गया है
समाज में इस बात पर भी तीखी प्रतिक्रया थी की आखिर पैसे के बलबूते होने वाले इन कार्यक्रमों में गैर कायस्थ कलाकारों को इतना स्थान क्यूँ दिया जाता है I लखनऊ के कायस्थों ने २ दिन से ही ये सवाल भी उठाया हुआ था की समाज के कार्यक्रम में गैर कायस्थ कलाकार को बुलाने की क्या ज़रूरत थी क्या लखनऊ में प्रतिष्ठत कायस्थ कलाकार ही नहीं रह गये है ?
इस परिपाटी से कायस्थों के उत्त्थान के दावे करने वाले समाज सेवी क्या साबित करना चाहते है ?
अब ऐसे में एक सज्जन कमेन्ट भी यहाँ महत्वपूर्ण है की आयोजको ने लोगो से पहले ही कह दिया था की वो बस कार्यक्रम में अपने साथ लोगो को लाये और एन्जॉय करे , बाकी सब इंतजाम कर दिए गये है I ऐसे में आयोजको की मंशा को ना समझना समाज के लोगो की भूल है
समाज में पैसे से सेवा vs सामाजिक सेवा
असल में इस कार्यक्रम की चमक दमक ने समाज के सामने कई मुश्किलें कड़ी कर दी है और ये केवल अब लखनऊ की समस्या भर नहीं रह गयी है कल को ये इलाहाबाद , बनारस , कानपुर पटना और दिल्ली सब जगह हो सकती है I पहली मुश्किलतो ये है की समाज पर अपने कार्यक्रम पैसो वालो के कार्यक्रमों के बराबर करने का दबाब बना दिया है क्योंकि पैसे वाले धन कुबेर तो समाज को बिना विश्वाश में लिए अपने ४ लोगो के साथ पैसे के बल पर कार्यक्रम को हाईटेक बना सकते है जिसमे लोगो को दर्शक की भाँती देखने का तो अधिकार होगा लेकिन उसमे भाग लेने का नहीं I
ऐसे में पारंपरिक समाज सेवियों जो आपस में मिलकर समाज हित के कार्यक्रम करते है के लिए बड़ी समस्या है क्योंकि ये भागदारी तो करवायेंग लेकिन उतना बड़ा मंच नहीं दे पायेंगे I जिसके चलते पैसे के बलबूते लोग समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करेंगे I
ऐसे में समाज को धन कुबेरों के आगमन से क्या सच में फायदा होगा या बस समाज के नाम पर करोरो रूपए ऐसे ही समागमो में स्वाहा हो जायेंगे और समाज के बच्चे मंचो पर जाने के लिए तरस जायेंगे क्योंकि पैसा सब कुछ तो खरीद सकता है लेकिन लोगो की ख़ुशी नहीं I
कार्यक्रम के बचाब में उतरे लोगो को भी सोचना होगा की आखिर हम समाज को किस दिशा में ले जा रहे है
क्या सिर्फ़ समाज सेवी होने का तमगा अब सिर्फ पैसे खर्च करने के वाले के पास ही होगा ?
क्या सामाज सेवा सिर्फ महगे कार्यक्रमों और अखबारों में महंगे विज्ञापनों को दिखा कर होगी ?
पैसे की चमक से बनते समाज सेवी कायस्थ समाज को क्या दे पायेंगे क्योंकि उनका एजेंडा समाज नहीं बल्कि अपना उत्थान है
इन प्रश्नों के उत्तर समाज से ही आयेंगे क्योंकि अगर ये प्रतियोगिता बढ़ी तो समाज में समाज सेवी सिर्फ पैसे की नुमाइश करने वाले धनकुबेर ही होंगे और असली समाज सेवी जल्द ही समाज से विलुप्त हो जायेंगे
आप की राय
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Ye paisa samaj ke garib baccho ki siksha,health,shadi aur anya utthan ke kamo me bhi istemaal ho Santa tha.