हम अपने संस्कृति के प्रसिद्ध त्योहार दुर्गा पुजा एवं विजया दशमी का त्योहार मना रहे हैं। नौ दिन तक हम शक्ति की अराधना करते हैं तत्पश्चात, आसुरी शक्तियों पर विजय का पर्व विजयदशमी मना कर आनेवाले वर्ष के लिए एक असीम ऊर्जा से भर जाते हैं। एक संतोष एवं आत्मविश्वास हमारे मन मे उदित हो जाता है जिससे हम नित्य दिन ऊर्जान्वित होते हुए सभी बाधाओं पर विजय पाने का प्रयास करते है। यह ऊर्जा की आध्यात्मिक रिचार्जिंग व्यवस्था है, जो हमारे जीवन को संचालित करती है।
ठीक इसी तरह की व्यवस्था कायस्थ समाज मे भी अनंत काल से चली आ रही है। इसी कड़ी मे आज से बीस दिन बाद हम भगवान श्री चित्रगुप्त पुजा मनाएंगे। पर क्या आपने कभी सोचा है कि क्या हम भगवान श्री चित्रगुप्त की पुजा सही परिप्रेक्ष्य मे उचित ढंग से मनाते हैं? क्या आनेवाले 365 दिन के चुनौतियों के लिए ऊर्जान्वित हो पाते हैं? अगर नहीं तो हमे प्रयास करने चाहिए।
यों तो हमारे कुल ने इस धारा को कई अनमोल रत्न दिये हैं पर आज हमअपने दो गौरवशाली युग पुरुषों की बात करेंगे । पहला स्वामी विवेकानंद एवं दूसरे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। ये दोनों कायस्थ कुल गौरव पूरे विश्व के लिए जिए और अपने आप को जन कल्याण मे समर्पित कर दिया। अगर हम वर्तमान का विश्लेषण करें, तो हम सब उनके संदेशों का रंच मात्र भी अनुशरण नहीं करते।
आज कायस्थ समाज अगर उनके सिर्फ एक संदेश को ही विचार मे ढाल ले तो अपने समाज का कायाकल्प हो सकता है। स्वामी जी ने कहा था –“ तुम्हें अंदर से बाहर तक विकसित होना है। कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता, यहाँ तक कि मैं भी नहीं। कोई तुम्हें आध्यात्मिक बना नहीं सकता। तुम्हारी आत्मा के अलावा तुम्हारा कोई गुरु नहीं” यहाँ तक कि मैं भी नहीं। कितनी सटीक उक्ति है हमारे पूर्वज स्वामी विवेकानंद जी की, जो हमारे समाज पर फिट बैठती है। हमारे दूसरे पूर्वज नेताजी का उद्घोष देखें – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।“ सामान्य सा लगने वाला यह वाक्य पूरे जीवन का सार है। बिना कुछ दिये कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। प्रकृति एक रिसाइक्लिंग व्यवस्था है, एक दो दस लो।
आज हम कहाँ खड़े हैं, क्या कर रहे हैं?
हाल की घटनाओं पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जायगा कि हमारे कायस्थ संगठन श्रेय लेने की होड मे कितने गंदे प्रयास करते नजर आए। ऐसा लगता है जैसे कि उनके लिए यह कोई त्रासदी नहीं, प्रचार पाने का एक सुअवसर हो। यह सामाजिक संगठनो के उद्देश्य से मेल नहीं खाती। समाज के परिवारों की व्यथा पर यह राजनीतिक दुष्कर्म सामाजिक संगठनों के लिए कतई उचित नहीं कही जा सकती। समाज को ऐसे सामाजिक संगठनो से अलग होना होगा, पीछा छुड़ाना होगा, इन्हे तरजीह देना बंद करना होगा। दरअसल ऐसे संगठन का शीर्ष नेतृत्व सामाजिक संगठन के योग्य ही नहीं है।
समाज मे जिस तरह से जातिगत विकृतियाँ अपने चरम पर है, समाज को अभी कई दंश झेलने पड़ेंगे। मुसीबत थमने का नाम ही नहीं ले रही। कायस्थ लड़कियों को जबरन उठा लेना, उनके साथ अमानुषिक दुष्कर्म, प्यार की पिंगे बढ़ाकर लड़कियों को दिग्भ्रमित कर गलत रास्ते पर धकेल देने जैसी कई घटनाएँ बढ़ रही है जो हमारी जातिगत कमजोरी का पर्याय बन रही है। सामाजिक अपराधी को कायस्थ जाति से कोई भय नहीं। इसलिए वे निर्भीक हो हमे सॉफ्ट टार्गेट के रूप मे चुनते हैं। सामाजिक विरोध का स्वर क्षीण होने के कारण प्रभावित परिवार भी बहुत देर तक विरोध कायम नहीं रख पाते। जिसका लाभ असामाजिक तत्वों को मिलता है। शिक्षा एवं रोजगार की विकट समस्या
वर्तमान समय मे नौकरी या रोजगार पहले की अपेक्षा ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो चुका है। नौकरी पाने केलिए या बाजार मे अपने रोजगार को उचित ऊंचाई देने के लिए अब आपको अत्यधिक कुशाग्र होना होगा। यह भी सच है कि हमारे समाज के अधिकतर परिवार अभी इस स्थिति मे नहीं हैं कि वे अपने बच्चों को उत्कृष्ट शिक्षा दे सकें अथवा रोजगार के लिए उचित धन की व्यवस्था कर सकें। इस स्थिति को बदलने के प्रयास किए बिना हम अपेक्षित परिणाम नहीं पा सकते। शिक्षा एवं रोजगार मे अपने परिवार को हर संभव सहायता करना सामाजिक संगठनो का भी दायित्व है, पर यह सबों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। आप संगठन से दूर रह कर मुकाम नहीं प सकते।
शादी-व्याह मे आड़े आती कुरीतियाँ एवं महत्वाकांक्षाएं:
यों तो हर माता-पिता की अच्छे वर-वधू पाने की आकांक्षा होती है पर अधिकतर माँ –बाप अपने बच्चों की शादी के लिए परशुराम के धनुष तोड़ने जैसा कडा शर्त रख देते हैं, जिससे लड़के-लड़कियों की उम्र अच्छे वर वधू की लालसा मे अत्यधिक बढ़ जाती है या यों कह लीजिये कि शादी की उम्र ही पार कर जाती है।
अज्ञानता, जड़ता जहां भी है, उसमे सुधार होना चाहिए। समाज देख रहा है बेटे -बेटियों की शादी की उम्र इसी पसंद-नापसंद मे निकल जा रही है। हम बच्चों का भला चाहते हैं या ढकोसला या अपनी पसंद की जिद ? कितनी सामाजिक बुराइयाँ हमारे समाज मे घर कर गयी है? पहले तो हम उपजाति का मिलान करते हैं, फिर क्षेत्र, गोत्र, कुंडली, रंग, ऊंचाई, शिक्षा, नौकरी, पारिवारिक पृष्ठभूमि, अगर लड़का या लड़की नौकरी कर रहे हैं तो दोनों के वेतन, शहर, आदि-आदि।
इतने मापदण्डों से गुजर कर शादियाँ आखिर हो तो कैसे? और जब बच्चे किसी की निकटता पाकर प्यार के नाम पर विजातिए शादी कर लेते हैं तब उपरोक्त सभी मापदंड कहाँ चले जाते हैं? तब अभिभावक का सुर होता है बच्चों के जिद के आगे झुकना पड़ा ! और समाज को मिलता है वर्णशंकर संतानों का अभिशाप। पूरा कौम लांछित होता है सामाजिक मर्यादा तोड़ने के नाम पर। काश आप पहले झुक गए होते?
इसलिए अभिभावकों, समय रहते इन सभी कुरीतियों को यथा संभव दूर करने के लिए सोंचे। सरकारी नौकरी सीमित है और आरक्षण के दौर मे हम कायस्थों को यह नौकरी आसानी से हासिल नहीं है। दूसरी ओर प्राइवेट नौकरी मे ज्यादा पैसा, सम्मान एवं पद की गुंजाईस भी है। एक सरकारी क्लर्क से ज्यादा वेतन एक सेल्स प्रॉफेश्नल पाता है। बैंक मे, सरकारी विभागों मे नौकरियाँ न के बराबर उपलब्ध हैं। आप अपने बच्चों का समय व्यर्थ न गवाएँ। आईएएस, आईपीएस तो हमारे समाज मे इक्का-दुक्का ही बनते हैं। आप भरण-पोषण करने एवं सुखमय जीवन निर्वहन की योग्यता को मापदंड बनाएँगें तो आपके बच्चे ज्यादा सुखी रहेंगे।वर्ण शंकर कायस्थ- हमारे समाज की विफलता।
कायस्थ समाज मे संस्कार की जगह हठधर्मिता ने ले ली है। वर्तमान समय मे हमारा सामान्य कायस्थ समाज रूढ़िवादिता के शिकंजे से बाहर आता नहीं दिख रहा दूसरी ओर अग्रणी पंक्ति मे आ चुके कायस्थ को कायस्थ संस्कृति से ही कोई मतलब नहीं। जो व्यक्ति अपने कुल का नहीं हो सका वह समाज का कदापि नहीं हो सकता। अतः कायस्थ समाज मे एक नयी जागृति लाने की जरूरत आ खड़ी हुई है। हम किसी भी स्थिति मे वर्ण-शंकरता को स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसे परिवारों की पहचान अब आवश्यक हो गयी है और इन्हे उपेक्षित करना जरूरी है। ताकि इनकी बाढ़ को रोका जा सके।
समाज के हर क्षेत्र मे आ रही गिरावट को हमे रोकना होगा और उसके लिए आपके योगदान की भी जरूरत होगी। यह किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ी हुई समस्या नहीं है। यह समस्या हमारे समाज की है और हमे ही सुधार के लिए सोचना भी होगा। अतः आज हमे शक्ति आराधना के अवसर पर आत्मविश्लेषण कर सुधार की दिशा मे कदम उठाने के लिए प्रतिबद्धता की शपथ लेनी होगी।
जय श्री चित्रगुप्त। -
महथा ब्रज भूषण सिन्हा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष ,
अखिल भारतीय कायस्थ संगठन
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