रविवार विशेष : कायस्थ समाज में अमीर और गरीब कायस्थ के बीच की खायी बढ़ रही है
आशु भटनागर I कायस्थ समाज में संगठनो की लड़ाई के बाद युद्धविराम का दौर है I आरोप प्रत्यारोप अब पुरानी बात होते जा रहे है जो की निश्चित ही एक अच्छा संकेत है , समाज में पवित्र समाजसेवी और स्वयंभू नेता हाशिये पर जा चुके है I लेकिन समाज में इस शान्ति के बड़े मायने खोजने की ज़रूरत है दरअसल पिछले कुछ महीनो में जिस तरह से कुछ समाजसेवियों ने अपने प्रभुत्व के लिए मर्यादा की सारी सीमाए लांघ दी थी और अपने पत्थरबाजों के साहे या फिर लोगो को फ़ोन कर करके लोगो का चरित्र हनन करने की प्रणाली विकसित की थी वो उनको ही बैकफायर कर गयी I
कायस्थखबर के सम्पादक के तोर पर मुझे उनसे त्रस्त ऐसे कई लोगो के फ़ोन भी आये जिन्होंने बताया की ऐसे लोग ना सिर्फ फ़ोन पर काफी काफी देर तक उनका समय भी बर्बाद करते है बल्कि कभी कुछ सही काम करते भी नहीं दीखते I जाहिर तोर पर इसका सन्देश सभी जगह गया और खुद शायद उनके पास भी I
विनाश के बाद ही सर्जन होता है ?
देखा जाए तो किसी भी विनाश के साथ ही प्रकात्री सर्जन के भी बीज बो देती है I हम अक्सर देखते है की जब जब पाप और अत्याचार बढ़ते है तब तब एक नयी आशा का संचार भी होने लगता है I ऐसे ही कुछ नए पौधे भी उसी समाज जनम ले रहे थे जब समाज में आपसी दोषारोपण की आखरी लड़ाई चल रही थी I
समाज में युवा चेहरे अब ला रहे है बड़े सवाल ?
एक लम्बी शान्ति के बीच युवाओं ने ही अब कुछ कर दिखाने की मुहीम शुरू की है जिसका एक उदाहरण पिछले दिनों लखनऊ के युवा राकेश श्रीवास्तव की १ रूपए से कायस्थ जोड़े मुहीम से दिया जा सकता है , लखनऊ के इस युवा ५०० लोगो से मात्र १ रूपए लेकर २ परिवारों को खाने का सामान पहुंचा दिया और वो भी बिना किसी अपील और प्रचार के बिना I ऐसे ही अयोध्या के धर्महरी मंदिर के लिए जब स्वयंभू नेता सिर्फ अपीले लगा रहे थे तो एक युवा सच श्रीवास्तव ने अपने युवा संगठन की तरफ से २१००० रूपए करके दे दिए I सच यहीं नहीं रुके बिहार की बाढ़ में कब वो अपनी टीम के १५ लोगो के साथ मदद और स्वास्थ्य सेवाए देने के लिए पहुँच गये ये एक बड़ा आश्चर्य था उनकी टीम का हौंसला देख कर बिहार के कई कायस्थ डाक्टर उनके साथ मुहिम में जुड़ गये I ऐसा ही हुआ जब पिछले दिनों विवादित रहे स्वप्निल श्रीवास्तव ने भी दो ज़रूरतमंद कायस्थो के लिए कब चुपचाप मदद कर दी लोगो को पता ही नहीं चला I नॉएडा में ही स्वयम का एक गैराज चलाने वाले उपदेश श्रीवास्तव रोजाना गरीब कायस्थों की बेसिक समस्याओं को सुलझाने में जिस तरह से लगे है वो भी अनुकरणीय हैं
इन सभी घटनाओं में एक बात कामन थी और वो थी थी की ये लोग अमीर या सक्षम नहीं थे I ना ही किसी प्रकार की मददके बड़े बड़े दावे कर रहे थे लेकिन एक भावना थी असली गरीब कायस्थ की मदद की I जिसके लिए उन्होंने बिना किसी संगठन , बिना किसी प्रोपेगैंडा के काम कर दिए I
ऐसे में पिछले कुछ दिनों से जब राकेश श्रीवास्तव ने bpl से नीचे वाले कायस्थों की बात करनी शुरू की तो बड़े नेताओं को कोई जबाब देते नहीं बन रहा है , प्रचार की चमक दमक से दूर , आडम्बरो के रहित ये युवा अब कायस्थ समाज के गरीबो को लेकर जो अपनी सोच दर्शा रहे है उससे ऐसा लग रहा है की समाज एक बार फिर से दो भागो में विभाजित हो रहा है , एक तरफ चमक दमक से परिपूर्ण नेता हैं जो तमाम अपीलों के बाबजूद एक यूनिट ब्लड नहीं जमा कर पा रहे है दूसरी तरफ गरीबो में रहकर गरीबो के बीच काम करने वाले नए योधा हैं I ये योधा आगे जाकर कितना कार्य करेगे या कितना गरीबो के लिए कर पायेंगे ये समय ही बताएगा
नमस्कार
क्या हमारे इस संगठन में वो कायस्थ भी हैं जो इस लायक तो हैं कि जो वो किसी गरीब कायस्थ कि गरीबी दुर कर सकतें है । मेरा कहने का मतलव नौकरी से क्यूँ की अगर किसी के पास पैसा होगा तो बिजनेस का आइडिया देने वाले बहुत मिल जातें हैं । परन्तु कायस्थ को नौकरी देना कोई नहीं चाहता , कारण ये बात सबको पता है की जो अगर ये जहाँ नौकरी करेगा वहाँ दुसरे कि नहीं चलेगी । एसे मंत्री, ऐसे बिजनेस टाईकुन या ऐसे पद पर बैठे लोगों ( कायस्थों) तक हमारी बात पहुँचेगी कैसे, अगर पहुँचेगी नहीं तो इनको मालुम कैसे परेगा । क्युँकी ये अपने पास तो या अपने ऊपर ऐसा आवरण डाल के रखते हैं जहाँ तक गरीब कायस्थ की आवाज पहुँच ही नहीं पाता । जय चित्रांश ।
Samuhik Sri Chitragupt PuJAN 22Occtober17 ko 10 AM Sarvesher Mandir Shills PCO Gali LDA Kanpur Road Lucknow.
लखनऊ बहुत सी कायस्थ सभाये हैंऔऱ उनके अपने अपने अपने प्रोग्राम के तरीक़े हैं।विनोद बिहारी वर्मा और शेखर जी के प्रयास से सभी कायस्थ सभाओ के सहयोग से समन्वय समिति का निर्माण किया गया।।पर यह किआ हुआ समय ने पलट खाया और लिस लिए इसकनिर्माण किआ गया उसको भूल कर और सभाओ की तरह एक सीमित दायरे बाली सभा बन गयी नाम का दुरुपयोग हो गया।किआ अपना स्वार्थ सिद्धि करना मात्र है सभी लखनऊ की संस्थाओं भरम पैदा जो गया है। जय चित्रांश कैसे भला होगा समाज का